एक साहसी स्त्री
परिस्थितियों से लेती है लोहा
कठिनाइयों को देती है मात
चट्टानों से टकराती है दिन-रात
दुश्मनों से दो-दो हाथ करती बेख़ौफ़
समय के हर थपेड़ों में रहती है मुस्तैद
उड़ाने भरती है जमी से अस्मा तक रोज़
मिटटी से खेलती है,खाती है हवा के झोंके
सिकन तक नहीं आने देती है माथे पर.
एक दबंग स्त्री
पलंग पर लेटे-लेटे
संचालन करती है
सत्ता,संस्था और परिवार का
हिम्मत नहीं कोई सेंध लगाये
अटूट किले को भेद पाए
अमित परछाइयों से सब भयभीत हैं
बच्चे,बूढ़े और जवान.
एक उम्रजदा स्त्री
विस्तार से उठती है
घुटनों को पकड़े
दर्द से कराहते हुए
गुदड़ी के सिलवटों से परे
पैर जमीन पर बढ़ाती है
औचक आह निकल पड़ती है
चारपाई पर सहस ढेर हो जाती है.
एक तुनक स्त्री
चीखते-चिल्लाते प्रवेश करती है
मानो अस्मा सर पर उठाये फिरती है
देहरी से आगे घर के दहलीज पर
दनदनाते हुए कदम रखती है
सूरज के रौशनी से होड़ लगाती है
फरमाईसों पर फरमाईसें सुनाती है
मखमली सोफे पर अधलेटी हो जाती है.
एक मेहनती स्त्री
गोबर का खांची लिये
फावड़े काँधे पर टांगे
पगडंडियों के सहारे
बढ़ती है आगे
खेतों में करती है कोडाई
लहलहाते फसलों को देख
नेत्र में आ जाते है रोशनाई
काले नजरों से बचाने हेतु
धोख बांध प्रफुल्लित होती है.
एक मासूम स्त्री
भविष्य की सम्पूर्ण नारी
चहंकती फिरती है घर-आँगन में
हुनकती है माँ के आँचल में
जीद पर अड् के करती है मनमानी
अपने आगे-पीछे नाचती है सबको
भोलेपन में करती है तमाम हरकतें
किये-कराये पर करती है वेबाक टिप्पणी
कोई भी झुठला नही पाता उसके नादानी को.
डॉ.सुनीता
बहुत सुंदर रचना,स्त्री के अनेक रूपों सार्थक बहुत अच्छी प्रस्तुति,...
ReplyDeleteसुनीता जी,पोस्ट पर आइये,...स्वागत है
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
bahut sundar rachna time mile to ap mere blog pe bhi padhare
ReplyDeletehttp://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.in/
अलग अलग रूपों से सजी बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
वाह.........सुनीता जी औरत के रूपों की सुन्दर प्रस्तुति ..............सुन्दर रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteकल 12/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सटीक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकितने रूप...!!! सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर बधाई..
सच है....
ReplyDeleteकितने रूप है नारी के..
कभी कभी एक ही नारी कई रूप धारती है परिस्थितियों के अनुरूप....
बहुत अच्छी रचना.
नारी के कितने अलग रूप पर हर रूप मे नारी अपने आप को स्थापित करती है ... गहरी रचना ... बहुत ही भाव पूर्ण ...
ReplyDeleteपोस्ट पर आने के लिए...बहुत२ आभार....
ReplyDeleteNaari ke vividh roopon ki bahut sundar prastuti..
ReplyDelete