पगली पवन



२० मार्च २०१२/११.१६ 


सरसराती हवा सनसना रही है
वदन से लिपट के यह जता रही है


अठखेली करके जुगनू से गले मिल रही है
बढ़ती दूरियों को मिटाने के जुगत लगा रही है

शाम सुहानी से बरजोरी कर गुनगुना रही है
उसके पहलू में बैठ के सपने सजा रही है
 
सुबह के रानी से शिकवा करती रिझा रही है
मेरे राहों में न आ दुश्मनों सा गिला कर रही है

पांव में सिहरन पैदा कर मुस्कुरा रही है
नाजों-अंदाज़ से अपनी अदा दिखा रही है

आँखों में शरारत भर के चिढ़ा रही है 
धूल से सनी धरा को अपनी सौतन बता रही है

अनगिनत खेल दिखा-दिखा के ललचा रही है
बहरुपिए के रंग को अपने दामन में छुपा रही है

अपने आज़ादी के दिन को रंगीन बना रही है
उछल-कुद करती चारों दिशाओं में घुम रही है
  
जीने के हुनर को हर पल सिखा रही है
कतरा-कतरा मिला है सहेजने की जुगत लगा रही है

चाँद-तारों से गठबंधन करके इठला रही है
इक-इक को अपने अदृश्य अंगुली पर नचा रही है 

मन-मौजी बन फिरती पगली पवन को झला रही है
उसके संग-संग बौराई बावली बनी फिर रही है

अपने मदमस्त अदाओं से फिज़ा महका रही है 
जीवन के पथ पर आते बाधाओं से जूझना सिखा रही है 
  
                                     


                                                               डॉ.सुनीता 

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर!!!!
    जीने के हुनर को हर पल सिखा रही है
    कतरा-कतरा मिला है सहेजने की जुगत लगा रही है

    बहुत खूब कहा...

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  2. आँखों में शरारत भर के चिढ़ा रही है
    धूल से सनी धरा को अपनी सौतन बता रही है...

    bahut sunder...

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  3. बहुत खूब!
    अपने आज़ादी के दिन को रंगीन बना रही है
    उछल-कुद करती चारों दिशाओं में घुम रही है

    my resent post

    काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

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  4. पगली पवन बाधाओं से लड़ना सिखा रही है -----------बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  5. जीने के हुनर को हर पल सिखा रही है
    कतरा-कतरा मिला है सहेजने की जुगत लगा रही है

    ....बहुत सुंदर...

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  6. वाह! क्या बात है, एक ही बात को कई- कई तरह से कहना कोई आपसे सीखे। सुंदर।

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