अकलों,पलकों में छुपा ले

पनाह मांगती हूँ
माँ तेरी गोंद में 
तेरी कोंख में 
तेरी जिंदगी में 
आँखों के कोर में नहीं पलकों के छाँव में
जैसे खिलते हैं फुल खुले असमान में 

सुनना चाहती हूँ लोरी तेरे लबों से 
तेरे सूखते होंठों से 
कंपकंपाते जिस्मों से
 लिपटना चाहती हूँ धडकनों से 
दिखावटी नहीं सुकून की तलास है
 उम्मीद से कहीं बढ़कर मान-अभिमान है
उस तरह नहीं जैसे पिता की मार है
इस तरह जैसे ओस की बूंदें खामोश हैं


तेरी बाँहों में झुलना चाहती हूँ
जिंदगी से मिलना है 
तुझमें खो के तुझसा बनाना है 
मैं देख रही हूँ 
तू सहमी है 
मेरे आने के खबर से घबराई हुई है 
हलचल मच रही है हृदय के कमरे में 
यहाँ बतकही छिड़ी है वंशज की 
उसे झिटक दो माँ 
मुझे नज़रों मे छुपा लो 
तेरी हर कुरबत को झेलेंगे 
वैसे नहीं जैसे एक पुत्र बोलके करता है
ऐसे जैसे चाँद-चकोरे से मिलता है
यादों में महसूस करके सिसकता 

                              क्रमश:
   डॉ.सुनीता

15 comments:

  1. बहुत ही प्यारी रचना......

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  2. एहसासों को खूबसूरत शब्द दिये हैं आपने।

    सादर

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  3. सुंदर अहसासों की अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..

    NEW POST...फिर से आई होली...

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  4. खूबसूरत एहसासों की अभिव्यक्ति

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  5. सुंदर भाव लिए अच्छी प्रस्तुति।

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  6. कोमल भावनाओं से सुसज्जित रचना...
    बधाई.

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  7. हर 'अजन्मी' की पुकार !...मर्मस्पर्शी रचना

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  8. बहुत ही सुन्दर रचना और भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति
    ---------------होली की शुभकामनायें |

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  9. beautiful post... although... mother is beyond description..
    plz visit my blog...sunita jee.

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  10. बहूत हि सुकोमल ,
    प्यारी रचना:-)

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  11. नरम शब्दों से बुनी ... माँ भी तो यही चाहती है ...

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  12. बहुत सुन्दर लाजबाब प्रस्तुति.

    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  13. माँ पर लिखी गई सुन्दर शब्द रचना ......

    होली की शुभकामनएं

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  14. ek ehsaaso'n bhari rachna...bahut khub...

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