चित्त नया, चन्द्रमा भी नया...


चित्त नया, चन्द्रमा भी नया...
(लल द्यद की काश्मीरी वाख कविताएँ)

अनुवाद: फारुख शाह     



(नोट-सबसे पहले इस रचना के बारे में जान लें ताकि पढ़ने में रसाआनंद लिया.....
लल द्यद : ललमोज ललारिफ़ा, लल्लेश्वरी आदि नामों से भी ख्यात काश्मीरी शैव प्रत्यभिज्ञा धारा की संत कवयित्री. जीवनकाल 1317 से 1388 ई. के दौरान. काश्मीरी लोक की मौखिक किंवदन्तिओं में योगी सिद्ध श्रीकंठ, नून्द रुषी (शेख नूरुद्दीन वली) और पीर अली हमदानी के साथ जुड़ी हुई यह रहस्यवादी संत-कवयित्री सभी धार्मिक वर्गों में समान रूप से अपनी मानी जाती रही हैं. सदियों से उनकी वाख (सूक्ति) कविताएँ मर्मी लोक के ह्रदय और मुख पर उजाला फैलाती आई है. जन्म-स्थान पाम्पोर के निकट पान्द्रेठन (वर्तमान सिमपोर). निधन श्रीनगर-जम्मू के मार्ग पर स्थित बिजबिहाड़ा गाँव में माना जाता है. उन्हों ने मानप्रतिष्ठा की सारी मर्यादाओं को तिलांजलि देकर सतचिंतन में निरत एक रमती-डोलती योगिनी के रूप में जीवन बिताया. आत्म की अंतरी चाल से अस्तित्व के उँचे मुकाम पार किये, चैतन्य के - सत्य के प्रदेशों को दूर तक जाना. साथ में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी संत नून्द रुषी और पीर अली हमदानी – तीनो ने मिलकर लोगों में बौद्धिक तथा मनुष्यता की चेतना जगाने का बहुत बड़ा काम किया.)


1.

लल बो द्रायस लोलरे 
छांडान लूसुम द्यन क्योह राथ 
वुछूम पंडिथ पननि गरे 
सुय में रोटमस नेछतुर त साथ 

* 
भाव से छलकती 
निकल पड़ी उसे ढूँढने 
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते बीते 
न जाने कितने ही दिन और रात 
आखिर पंडित को देखा अपने घर में ही 
बस उसी क्षण निकल आया 
मंगल मुहूरत 

2. 

आयस वते गयस नु वते 
सुमन सोथि मंज़ लूसुम दोह 
चन्दस वुछुम त हार नु अथे 
नावि तारस दिमु क्या बो 

* 
आ गई सीधी राह से 
लेकिन वापस न जा सकी 
सीधी 
चली जा रही थी पुल के बीच 
कि दिन ढल गया 
जेब में हाथ डाला तो 
मिले न एक पैसा भी 
अब पार उतरने के लिए 
नाविक को 
दूँ तो भी क्या दूँ ? 

3.

पानस लागिथ रूदुख मे चु 
मे चे छांडान लूसुम दो 
पानस मंज़ येलि ड्‌यूठुख मे चु 
मे चे त पानस द्युतुम छो' 

*
मेरे भीतर 
छिपे रहे तुम 
और दिन रात मैं तुम्हें 
ढूँढ़ती रही बाहर 
तुम्हें अपने भीतर छिपा पाया 
उस समय एकत्व का बोध हो गया 
और मैं झूम उठी 
आनंद में रममाण होती 

4. 
मी डीठुम नद वहवुनी 
मी ड्‌यूठुम सुम न त तार 
मी डीठुम थर फोलुवुनी 
मी ड्‌यूठुम गुल न त खार 

*

अभी देखा बहती नदी को 
और अभी देखा 
उसके ऊपर न कोई सेतु 
या पार उतरने कोई छोटी-सी पुलिया भी 
अभी देखी फूलों से लची डाली 
और अभी देखे उसके ऊपर 
न फूल न तो काँटे

5.

हचिवि हारिंज़ि प्यचिव कान गोम 
अबख छान प्योम यथ राज़दाने 
मंज़बाग़ बाज़रस कुलुफ-रोस वान गोम 
तीरथ-रोस पान गोम कुस मालि ज़ाने 

*

बाण मिला काठ के धनुष के लिए 
तो वह घास का 
बढ़ई मिला राजमहल बनाने 
तो वह भी निपट बुद्धिहीन 
मेरी दशा तो हो गई 
बीच बाज़ार में 
बिना ताले की दुकान जैसी 
रही मेरी देह तीर्थ-विहीन 
भलाकौन समझ सकता है 
मेरी इस लाचारी को ? 

6.

लनत हुंज़ माज़ लार्‌योम वतन 
किय हावनम अकिचिय वथ 
यिम यिम बोज़न तिम कोन मतन 
ललि बूज़ शतन कुनिय कथ 

*

सड़क पर चिपक गया 
पैर के तलुवों का मांस 
तभी दिखाया मुझे जिसने मार्ग 
जो उस एक का नाम सुनेंगे 
वे क्यों न पागल हो जाए ? 
लल ने तो निकाल ली 
सौ बातों में से सार की एक बात 

7.

चसस नु सातस नु रुमस 
सोमस मे ललि पननुय वाख 
न्दर्‌युम गटुकार रटिथ त वोलुम 
टिथ त द्युतमस तती चाख 

*

सूई की नोक 
या बाल जितनी भी 
कभी पीछे न रही 
मैंने भीतर के अंधकार को 
पकड़ लिया 
पकड़ के उसे चीर डाला 

8.

मल वोंदि ज़ोलुम 
जिगर मोरुम 
तेलि लल नाव द्राम 
येलि दल्य त्राव्यमस तत्य 

*

हृदय का सारा मल 
जला डाला 
जिगर का भी किया अंत 
उसकी दहलीज पर अंचल पसार 
बैठ गई अडिग 
तभी कहीं जाकर हुआ 
मेरा लल’ नाम प्रसिद्ध 

9.

तन मन गयस बो तस कुनुय 
बूज़ुम सतच गंटा वज़ान 
तथ जायि दारनायि दारन रटुम 
आकाश त प्रकाश कोरुम सरु 

*

 तन मन से खो गई 
उसके ध्यान में 
मुझे सत की घण्टी बजती 
सुनाई दी 
मैंने धारण कर लिया 
अपनी धारणा को 
और आकाश-पाताल का भेद 
जान लिया

10.
परुन सोलब पालुन दोरलब 
सहज गारुन सिखिम त त्रूठ 
अब्यासकि गनिरय शासतर मोठुम 
चीतन आनंद निश्चय गोम 

*

पठन सरल 
पर पालन मुश्किल 
मुश्किल है सहज की खोज भी 
अभ्यास के घने कुहरे में 
भूल गई सभी शास्त्र 
तब पा लिया चेतन-आनंद को 

11.

चरमन चटिथ दितिथ पन्य पानस 
त्युथ क्याह वव्योथ त फलिही सोव 
मूडस वोपदेश गयि रींज़्‌य दुमटस 
न्य दांदस गोर आपरिथ रोव 

*

अपनी चमड़ी को काटकर 
तूने गाड़ दिए खूंटे 
शरीर में चारों ओर 
बोया नहीं भीतर ऐसा कोई बीज 
मिले जिससे फल 
अब तुझे समझना तो ऐसा 
जैसे शिखर पर कंकर फेंकना 
या बैल को गुड़ खिलाना 

12.

छिनिस ओबरस ज़ायुन ज़ानुहा 
सुदरस ज़ानुहा कडिथ अठ 
मंदिश रूगियस वैद्युत ज़ानुहा 
मूडस ज़ानिम न प्रनिथ कथा 

*

बिखेर सकती हूँ दक्षिणी मेघ 
उलीच सकती हूँ समुद्र 
कर सकती हूँ ठीक 
असाध्य रोग को 
लेकिन समझा सकती नहीं 
मूर्ख को

13. 

आयस कमि दिशि त कमि वते 
गछु कमि दिशि कव ज़ान वथ 
अनति दाय लगिमय तते 
छेनिस फोकस कांह ति नो सथ 

* 

किस दिशा और किस मार्ग से आई 
नहीं जानती 
किस दिशा और किस मार्ग से जाऊँगी 
यह भी नहीं जानती
कोई तो मुझे सच बता दे 
केवल प्राण-साधना का आधार तो 
किसी काम का नहीं 

14.

 'सुय कुनय तय सा'म्पनिस स्यठा 
नज़दीख आ'सिथ ग'यस दूर 
बा'हिर बा'तिन कुनुय ड्‌यूठुम 
'यम ख्यथ-च्यथ चुवंज़ाह चूर 

* 

मैं एक थी 
अनेक हो गई 
पास रहकर भी रही दूर 
अंदरबाहर 
दिखाई देता था एक 
पर ये चोपन चोर 
सब कुछ खा-पी गए
और 
मुझे धोखा देकर चले गए

15. 

लोलुकि वोखलु वा'लिंज पिशिम 
कोकिल च'जिम त रूज़ुस रसु 
बुज़ुम त ज़ाजिम पानस चुशिम 
कवु ज़ानु तवु स्‌त्य मरु किनु लसु 

* 

प्रेम की ओखली में 
मैंने हृदय को कूटा 
मेरी कुवृत्ति नष्ट हो गई 
मैं हो गई बिलकुल शांत 
बाद में 
इस हृदय को भूना-पकाया 
और चखा 
अब मैं यह न जानूँ 
मर जाउँगी 
या जीवित रहूँगी ? 


16. 
क्याह करु पाँचन द'हन त कहन 
बोखशुन यथ लेजि क'रिथ यिम ग'ये 
सा'री समुहन यथ रज़ि लमुहन 
अदु क्याज़ि राविहे कहन गाव 

* 

इन पाँचदस और ग्यारह का 
क्या करूँ ? 
कर गये मेरी हंडिया को खाली 
वे सभी मिलकर खींचते 
एक ही दिशा में रस्सी 
तो फिर ग्यारह की देखरेख रहते 
गाय कैसे भाग सकती थी ? 

17.

मूड ज़ा'निथ पशिथ ति को' 
को'ल श्रुत वो'न ज़डुरफ आस 
युस यि दपी तस ती बोल 
यिहोय तत्वु विदिस छु अब्यास 

* 
जानते हुए भी मूढ़ बन जा 
देखते हुए भी बन जा अंध 
सुनते हुए भी बन जा बधिर 
और जागते हुए भी 
बन जा जड़ 
जो जैसा बोले 
उसके साथ वैसा ही बोल 
यही अभ्यास है तत्त्वविद्‌ का 



20. 

रावनु मंज़य रोवुम 
रा'विथ अथि आयस बवसरे 
असान गिंदान सहज़ुय प्रोवुम 
दपुनुय को'रुम पानस सरे 

* 
मैं खो गई 
यह भी भूल गई कि 
खो गई हूँ 
भवसागर में रत हो गई 
हँसते खेलते 
पा लिया सहज को 
और इस रीत को बना लिया 
बोध का आधार 


21. 

शुन्युक मा'दान को'डुम पानस 
मे ललि रुज़ुम न बोद न होश 
बेदो सपनिस पानय पानस 
अद कमि हिलि फो'ल ललि पंपोश 

* 
शून्य का एक असीम मैदान 
पार किया 
तब मुझे, लल को 
न बुद्धि रही न होश 
सहज का भेद पाकर 
कीचड़ में उगे कमल जैसी 
हो गई 


22. 

च्यथ नो'वुय च'दुरमु नो'वुय 
ज़लमय ड्‌यूठुम नवम नो'वुय 
यनु प्यठु ललि मे तन मन नो'वुय 
तनु लल बो नवम न'वुय छस 

* 
चित्त नया 
चन्द्रमा भी नया 
नित्य नया देखा 
भीतर की जलमय प्रकृति को 
जब से 
तन और मन को माँजा 
तब से लल भी नयी की नयी 





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