कहानी- सूखी पंखुड़ियाँ लेखक- अमरनाथ अमर (दूरदर्शन केन्द्र में कार्यक्रम अधिकारी ) हाल-फ़िलहाल में कई सारी कहानियाँ पढ़ी हूँ, साथ ही स...
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दीप जलता रहे
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हमारे चारों ओर केइस घने अंधेरे में समय थोड़ा ही हो भले उजेला होने
में विश्वास आत्म का आत्म पर यूं ही बना रहेसाकार हर स्वप्न सदा होता रहेअपने
हर सरल - कठिन र...
मतलब का मतलब......
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मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं,
फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं।
अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी,
जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं।
झूठी शान -ओ-शौकत...
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
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चक्कर छोटी 'इ', बड़ी 'ई' का
क्षेत्रीय प्रभाव
[image: ▪]हर साल की तरह इस बार भी मित्रों ने दीवाली/दिवाली की वर्तनी के
बारे में राय जाननी चाही। किसी से चैट प...
फिलिस्तीन पर हमला
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विगत एक साल से इजरायल ने फिलिस्तीन को बरबाद करने की नीयत से उस पर बर्बर
हमला किया है । अब उस युद्ध का विस्तार बड़े इलाके में हो रहा है और यूक्रेन
युद्ध...
आदरणीय लोग अधिक ख़तरे में हैं -सतीश सक्सेना
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परिवार में दख़लंदाज़ी , बड़प्पन के कारण हर समय तनाव, नींद की कमी ,
अस्वस्थ भोजन के साथ हाई बीपी , मोटापा, शारीरिक गतिविधियों में कमी के कारण
बढ़ती डायबिट...
पीयू का साउदर्न फेडरल यूनिवर्सिटी रूस से एमओयू
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साउदर्न फेडरल यूनिवर्सिटी रास्ता वंदन रूस से वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल
विश्वविद्यालय का एमओयू हस्ताक्षर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो वंदना सिंह के
नेतृत्...
आम जीवन से जुडी कला
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https://www.forwardpress.in/2016/06/amjivan-se-judi-kala_omprakash-kashyap/
- आम जीवन से जुडी कला
- बहुजन दार्शनिकों और महानायकों के चरित्...
गुमशुदा ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी
कुछ तो बता
अपना पता .....
एक ही तो मंज़िल है
सारे जीवों की
और वो हो जाती है प्राप्त
जब वरण कर लेते हैं
मृत्यु को ,
क्यों कि असल
मंज़िल म...
73 वें वर्ष का प्रवेश ------ विजय राजबली माथुर
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* 73 वें वर्ष में प्रवेश करने पर आज भी विगत वर्षों की भांति फ़ेसबुक और
व्हाट्स एप पर लोगों से शुभकामनाएं प्राप्त हुई हैं। व्यक्तिगत, सामाजिक आदि
संघर्षो...
ग़ज़ल
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मेरे दर्दे दिल को पिघलने दो ज़रा,
नज़रों को नज़र से मिलने दो ज़रा
गम का सूरज सर पे चढ़ आया है,
खुशियों की बदली, बरसने दो ज़रा
हाँ, मुझ तक नहीं पहुँच...
CSK Vs MI: तिलक, ऋतिक ने मुंबई की लाज रखी
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*लो स्कोरिंग मैच में मुंबई को मिली 5 विकेट से जीत, मुंबई इंडियंस के साथ
चेन्नई सुपरकिंग्स भी प्लेऑफ स्टेज से बाहर, चेन्नई सुपरकिंग्स की ओर से धोनी
को छ...
कोरोना के खिलाफ वायरोनार
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// व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभुत्व से चिंतित होकर परंंपरागत रूप से
हमारे साथ खेल-कूद कर बड़े हुए वायरसों में गहरा असंतोष ...
50 वीं विवाह वर्षगाँठ की शुभकामनाएं।
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खुशी में तकरार में, जीत में या हार में।
हर कदम साथ मे, पतझड या बहार में।
दिल कि धड़कनों में, चक्षुओं की चाह में।
एक दूजे के किये, एकदूजे की ओकर में।।
साथ सा...
नारी-निन्दा और तुलसीदास : फादर डॉ. कामिल बुल्के
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*नारी-निन्दा और तुलसीदास*
~ फादर डॉ. कामिल बुल्के
''रामचरित मानस के विभिन्न पात्रों और स्वयं तुलसी की भी ऐसी बहुसंख्यक
उक्तियाँ पढ़ने को मिलती हैं, जिनमें न...
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कोरोना को दूर भगाना है
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ख़ुशियों का संसार बसाना है
कोरोना को दूर भगाना है ।
आयी है सर पर विपदा भारी
दहशत में है यह दुनि...
2019 का वार्षिक अवलोकन (अट्ठाईसवां)
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खत्म होनेवाला है हमारा इस साल का सफ़र। 2020 अपनी गुनगुनी,कुनकुनी आहटों के
साथ खड़ा है दो दिन के अंतराल पर।
चलिए इस वर्ष को विदा देते हुए कुछ बातें कहती...
इंतज़ार और दूध -जलेबी...
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वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास
चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर
कि ब...
रेणु और कालीचरण
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गजब है कालीचरण । पैंसठ साल का हो गया है ,परंतु अपने सामाजिक-राजनीतिक रेशाओं
के कारण सब पर भारी है ।उसके संवाद पिछड़ावाद के टैगलाइन हैं ,उसकी कमजोरियां
पिछ...
काठ में कोंपल
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*6 अप्रैल, 2019 को दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में 'कथा-कहानी' के
आयोजन में मैंने अपनी कहानी 'काठ में कोंपल' का पाठ किया. यहाँ आप सभी मित्रों
के लिए य...
तुम्हारे शक्ल जैसी एक लड़की रोज मिलती है
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ से गिरती मेरे कंधे भिगोती है,
बिना बादल बिना मौसम के ये बरसात कैसी है।
सियाही ख़त्म होती है मगर पन्ने नही भरते,
तुम्हे पाकर तुम्हे खोना कहानी ...
पत्थर के नीचे दुःख - राकेश रोहित
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बोध कथा पत्थर के नीचे दुःख - राकेश रोहित तेज धूप में वहीं थोड़ी छांह थी।
बेटे ने पत्थरों को उठाकर एक जगह रखकर बैठने की जगह बनाने की सोची कि बाप ने
बरजा- "न...
YouTube Channel
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*www.youtube.com/beingpoet*
Dear readers,
Now, we are going to enter in a new space that is online digital channel.
As you know, we want to connect poetry...
गलती किसकी
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जब कोई #बापू कहता हैं तो लोग #महात्मा_गांधी समझते हैं
जब कोई #चाचा कहता हैं तो लोग #नेहरू_जी समझते हैं
जब कोई #भैया कहता हैं लोग #अखिलेश_यादव समझते हैं
जब क...
गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो
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*गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो *
लगभग दो वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् परम श्रद्धेय स्वामीजी संवित् सोमगिरि
जी महाराज के दर्शन करने (अभी 1 जुलाई) को गया तो मन भ...
जिन्द्गी
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जिन्दगी
कल खो दिया आज के लिए
आज खो दिया कल के लिए
कभी जी ना सके हम आज के लिए
बीत रही है जिन्दगी
कल आज और कल के लिए.
दोस्तों आज मेरा जन्म दिन भ...
नए पुराने मौसम
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मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर
बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही !
मोहब्बत,यारियों और बा...
राष्ट्रीय संगोष्ठी / National Conference
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पी जी डी ए वी कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी *विषय :
स्वातंत्र्योत...
गीत चतुर्वेदी के नए संग्रह से कुछ कविताएँ
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इस साल पुस्तक मेले में एक बहु प्रतीक्षित कविता संग्रह भी आया. गीत चतुर्वेदी
का संग्रह 'न्यूनतम मैं'. गीत समकालीन कविता के ऐसे कवियों में हैं जिनकी हर
काव...
गर्मी मीठे फल है लाती
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लाल लाल तरबूजे लाती,
गर्मी मीठे फल है लाती.
आम फलों का राजा होता,
बच्चों को मनभावन लगता.
मीठे पके आम सब खाते,
मेंगो शेक भी अच्छा लगता.
खरबूजा गर्मी में आ...
पचास साल में सवा तीन कोस
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*भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) की विशाखापत्तनम
कांग्रेस से आगे की चुनौती *
भला किसने सोचा होगा कि भारत में वामपंथी राजनीति की हरावल पा...
हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग
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वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध
सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...
ढब्बू जी की बोल बुद्धू का हुआ लोकार्पण
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*- रविराज पटेल *
ढब्बू जी का यही ढंग है, बच्चों में सहज बोध और विविधता को जन्म देना |
बच्चों को पढ़ना लिखना उसे बोझ नहीं, बस खेल लगे | उसी बाल मनोरंजन ...
चुप्पियाँ
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वो उदासियों के
तमाम रास्ते तय कर
खुशियों की दहलीज़ पर
चुप्पियाँ लिए बैठा था
इस बात से अनभिज्ञ
कि खिलखिलाहटों की कुंजियाँ
उसके शब्द थे ....................
ठूंठ बनकर खड़ा हूँ
-
1
वो
हममें तलाशा रहे थे
प्यार का समंदर
और
खुद मरुस्थल बन भटकते थे
2
भोगवादी
भोगतंत्र के खिलाफ़
लोकवादी
लोकतंत्र के पक्ष में खड़े हों …!
3
लड़ो !
लोहा लाल है...
घर…!!!
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*इस घर के हर कोने में बसी हैं यादें कितनी इसलिए यहाँ जानाऔर जाके भूल पाना
बेहद मुश्किल है ......माँ के जाने के बाद पिता ने मान ली है हार हर वक...
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बात ऐसी तो नहीं चलती की ,
आँखें दरिया बन जाए,
मन ऐसा तो नहीं मचलता की,
जान पे बन आये,
फिर भी,
मौजे उठती हैं,
तूफ़ान लेकर आती है,
कभी न कभी ये तबाही जरुर लाए...
लोकराग में भीगा मन
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*लगभग* 19वीं शताब्दी के बाद वैज्ञानिक विकास की समूची अवधारणा को मनुष्य
केंद्रित बना दिया गया। जितना संभव हो सका उतना प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों
की लूट हु...
प्रभावित करता सुंदर आलेख,,,बधाई,सुनीता जी,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बेहतरीन लेख,बेहतरीन सन्दर्भ
ReplyDeleteप्रभावशाली कलम है आपकी ...
ReplyDeleteबधाई !