चांदनी रात की शोभा सुबह होने के साथ ही धूमिल होने लगती है.लेकिन भोर का तारा जीवन को नए अंदाज़ के साथ जीने का सीख देती है.इसी के संग जीवन क...
Followers
अपनी लिपि मे लिखें--
आप यहाँ रोमन अक्षरों में हिंदी लिखिए वो अपने आप हिंदी फॉण्ट में बदल जायेंगे.पूरा लिखने के बाद यहाँ से कॉपी करके कमेन्ट बौक्स में पेस्ट कर के पब्लिश पर क्लिक करें.
जन्म से आज़ादी तक
-
#शब्दकौतुक
जन गण मंगल की बात
[image: ▪]स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, जब हम राष्ट्र, जन और गण की बात करते
हैं। संस्कृत-हिन्दी-फ़ारसी-अंग्रेज़ी के कई शब्द- जै...
कम्युनिस्ट आंदोलन और भाकपा (माले) का जन्म
-
मार्क्स ने अपने समय अंग्रेजी राज का विरोध किया । रूसी क्रांति के बाद लेनिन
ने उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों के साथ एकजुटता बनायी । भगत सिंह...
आजादी के गीत गाएं
-
नई उमंगें , नई तरंगें अपना तिरंगा, आओ लहराएं आजादी के गीत गाएं। आजादी जो
मिली तप से और अनेकों कुर्बानियों से सारी सच्ची कहानियों को आओ मन से फिर
दोहराएं। आ...
उमस, प्राकृतिक तरीका पसीना निकलने का -सतीश सक्सेना
-
पसीना वरदान है मजबूत बीमारी रहित शरीर के लिए , त्वचा के
असंख्य छिद्रों से बहता पसीना हमारे शरीर का ज़हर बाहर फेंकता है और एक पूरा
सीजन जिसमें गर्मी और उ...
ट्रम्प की लात
-
//व्यंग्य - प्रमोद ताम्बट //
ट्रम्प की घास न डालने वाली ट्रेजडी का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि उसने
हमारे पृष्ठ भाग पर कस के लात मार दी। लात भी ऐसी मार...
मतलब का मतलब......
-
मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं,
फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं।
अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी,
जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं।
झूठी शान -ओ-शौकत...
CSK Vs MI: तिलक, ऋतिक ने मुंबई की लाज रखी
-
*लो स्कोरिंग मैच में मुंबई को मिली 5 विकेट से जीत, मुंबई इंडियंस के साथ
चेन्नई सुपरकिंग्स भी प्लेऑफ स्टेज से बाहर, चेन्नई सुपरकिंग्स की ओर से धोनी
को छ...
नारी-निन्दा और तुलसीदास : फादर डॉ. कामिल बुल्के
-
*नारी-निन्दा और तुलसीदास*
~ फादर डॉ. कामिल बुल्के
''रामचरित मानस के विभिन्न पात्रों और स्वयं तुलसी की भी ऐसी बहुसंख्यक
उक्तियाँ पढ़ने को मिलती हैं, जिनमें न...
ज़िंदगी और मुहब्बत के नाम
-
दो पंक्तियों में लिखे हुए कुछ शब्द जो मुहब्बत और ज़िंदगी के फलसफों को समझने
के लिए लिखे गए | देखिये आप भी , इन्हें मैं अनाम आदमी के नाम से अलग अलग
मंचों ...
2019 का वार्षिक अवलोकन (सत्ताईसवां)
-
डॉ. मोनिका शर्मा का ब्लॉग
Search Results
Web results
परिसंवाद
*आपसी रंजिशों से उपजी अमानवीयता चिंतनीय*
अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची ह...
कविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन
-
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार समारोह में शुभम श्री आई नहीं थीं। अच्युतानंद
मिश्र पहले ही कविता पढ़ चुके होंगे। अदनान कफ़ील दरवेश पढ़ रहे थे। उनकी
तस्वीरों और कव...
इंतज़ार और दूध -जलेबी...
-
वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास
चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर
कि ब...
-
वृक्ष
अगले जन्म में
मैं बनना चाहता हूँ एक वृक्ष
फलदार,बरगद,पीपल या नीम ही सही
छाया तो दूंगा
पक्षी जब बनाएँगे घोसले
तो कितना इतराऊगां मैं
अगर नीम बन गया
तो ...
नीरज और साहिर
-
नीरज और शक़ील ,साहिर ,जिगर के फिल्मी गीतों एवं गैरफिल्मी साहित्यिक
कार्य में एक ख़ास अंतर है । नीरज फिल्मी गीतों में ही अपनी रौ में होते हैं
। 'वो हम ...
"मेरे आशावाद का आधार है भूमंडलीय यथार्थवाद"
-
*'परिकथा' पत्रिका के जनवरी-फरवरी, 2019 के अंक में संपादक शंकर द्वारा लिया
गया इंटरव्यू*
*शंकर :* रमेश जी, आप 1970 के आसपास उभरे एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ...
कर्ज माफ या किसान साफ ?????
-
हम किसानों की इतनी बड़ी कर्ज माफी के लिए देश और प्रदेश के #मोदी जी और
#योगी जी का धन्यवाद करते हैं
और उन्हें बताना चाहेंगे कि किसान आपके अंबानी अडानी और म...
-
चलने को तो चल रही है ज़िंदगी
बेसबब सी टल रही है ज़िंदगी ।
बुझ गये उम्मीद के दीपक सभी
तीरगी में ही पल रही है ज़िंदगी ।
ऐ खुदा ,रहमो इनायत पे तेरी
ये मुकम...
वेरा पावलोवा की दो कविताएँ
-
*"एल्बम फॉर द यंग (ऐंड ओल्ड)" नाम है वेरा पावलोवा के नए कविता संग्रह का.
पिछले कविता संग्रह "इफ देयर इज समथिंग टू डिज़ायर" की तरह इस संग्रह की
कविताओं का भ...
गीत चतुर्वेदी के नए संग्रह से कुछ कविताएँ
-
इस साल पुस्तक मेले में एक बहु प्रतीक्षित कविता संग्रह भी आया. गीत चतुर्वेदी
का संग्रह 'न्यूनतम मैं'. गीत समकालीन कविता के ऐसे कवियों में हैं जिनकी हर
काव...
जब चन्दा को मिली चाँदनी, पूरण चाँद कहाया।।
-
वर्ष बीत गए जीवन के
एक वर्ष नव आया।
कोमल-चंचल-मधुरित मन तब,
हौले से मुस्काया।
तारों जड़ी चुनरिया संग तारा,
अंगना में उतराया।
जब चन्दा को मिली चाँदनी,
पूरण च...
प्रेम- विवाह से पहले या बाद......
-
बदलते दौर में सब कुछ अलग सूरत अख्तियार करता जा रहा है.....यहाँ तक की
भावनाएं भी बदल गयी हैं....सोच तो बदली ही है|
प्रेम जैसा स्थायी भाव भी कुछ बदला बदला लग...
वृक्ष के सपने में उड़ान है - राकेश रोहित
-
कविता वृक्ष के सपने में उड़ान है - राकेश रोहित वह इतनी अकेली थी सफर में कि
वृक्ष के नीचे खड़ी हो गयी वृक्ष ने उसे देखा और हरा हो गया! उसके मन में दुख
था सो...
मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह
-
ॐ
श्री गुरुवे नमः
*ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।*
* द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं
सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...
गर्मी मीठे फल है लाती
-
लाल लाल तरबूजे लाती,
गर्मी मीठे फल है लाती.
आम फलों का राजा होता,
बच्चों को मनभावन लगता.
मीठे पके आम सब खाते,
मेंगो शेक भी अच्छा लगता.
खरबूजा गर्मी में आ...
पचास साल में सवा तीन कोस
-
*भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) की विशाखापत्तनम
कांग्रेस से आगे की चुनौती *
भला किसने सोचा होगा कि भारत में वामपंथी राजनीति की हरावल प...
हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग
-
वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध
सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...
..… .नारी ...
-
*जब भी चाहा असत से विरक्त होना *
*विलुप्तियों के अन्धकार में छुप जाना तुम मुस्कातीगुदगुदाती हो मुझे और मैं
हंस *
*पड़ता हूँ खिलखिलाते **………………………...
ढब्बू जी की बोल बुद्धू का हुआ लोकार्पण
-
*- रविराज पटेल *
ढब्बू जी का यही ढंग है, बच्चों में सहज बोध और विविधता को जन्म देना |
बच्चों को पढ़ना लिखना उसे बोझ नहीं, बस खेल लगे | उसी बाल मनोरंजन ...
रंग रंगीली होली आई.
-
[image: Friends18.com Orkut Scraps]
रंग रंगीली होली आई..
रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई
जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...
चुप्पियाँ
-
वो उदासियों के
तमाम रास्ते तय कर
खुशियों की दहलीज़ पर
चुप्पियाँ लिए बैठा था
इस बात से अनभिज्ञ
कि खिलखिलाहटों की कुंजियाँ
उसके शब्द थे ....................
Poems by Bobbi Lurie
-
Bobbi Lurie is a Mexican poet. She writes with a graceful ease. Her poems
essentially define the expression of a person coming on terms with his own
micro...
जब हम प्रेम में होते हैं
-
जब हम प्रेम में होते हैं,
पूरी दुनिया से रूबरू होते हैं
सजग हो जाती हैं जिहवा पर स्वाद कलिकाएँ
बढ़ जाता है जीवन का आस्वाद
त्वचा पर उग आते हैं संवेदनशील सं...
ठूंठ बनकर खड़ा हूँ
-
1
वो
हममें तलाशा रहे थे
प्यार का समंदर
और
खुद मरुस्थल बन भटकते थे
2
भोगवादी
भोगतंत्र के खिलाफ़
लोकवादी
लोकतंत्र के पक्ष में खड़े हों …!
3
लड़ो !
लोहा लाल ह...
-
बात ऐसी तो नहीं चलती की ,
आँखें दरिया बन जाए,
मन ऐसा तो नहीं मचलता की,
जान पे बन आये,
फिर भी,
मौजे उठती हैं,
तूफ़ान लेकर आती है,
कभी न कभी ये तबाही जरुर लाए...
लोकराग में भीगा मन
-
*लगभग* 19वीं शताब्दी के बाद वैज्ञानिक विकास की समूची अवधारणा को मनुष्य
केंद्रित बना दिया गया। जितना संभव हो सका उतना प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों
की लूट हु...
प्रभावित करता सुंदर आलेख,,,बधाई,सुनीता जी,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बेहतरीन लेख,बेहतरीन सन्दर्भ
ReplyDeleteप्रभावशाली कलम है आपकी ...
ReplyDeleteबधाई !