महिला मुद्दे और ब्लॉग

तृतीय भाग-

(हम वह सीताएं हैं जिन पर राम और रावण दोनों ने बराबर अत्याचार किया है. से आगे पढ़ें...)



शोषण की कहानी पर अभी तक कोई अंकुश नहीं लगा है.मासूम बच्चों के साथ खूंखार भेडिये की तरह टूट पड़ने वालों की जमात मुर्दा दिल लिए समाज में खुल्ले घूम रहे हैं.सच तो यह की एक नारी की दुनिया पेट के भौगोलिक परिधि में ही सिमट के रह जाती है.जो इससे विद्रोह करतीं हैं उसके ऊपर समाज के फतवे की औंधी तलवार लटका के छोड़ दी जाती है.
संचार पत्रों में व्यपार के लिए,विज्ञापन में बाज़ार प्राप्त करने हेतु,फिल्म में पैसे बनाने के लिए,साहित्य में पुरस्कार बटोरने के केन्द्र में महिलाएं,किसान और बिलबिलाते मासूम बचपन को ध्यान में रखा जाता है.जो जितना अधिक धन उगाहने में योगदान देगा उसे उतनी ही लोकप्रियता मिलती है.साहिर लिखते हैं-ये कूचे,ये नीलाम घर बेकसी के.मजरूह फरमाते हैं-हर निगाह उठती है खरीदार की तरह.दिन के उजाले में उजले दिखने वाले चेहरे राते के अँधेरे में भयानक हो जाते हैं.
स्त्रियां विमर्शों के नाम पर लोकप्रियता बटोरने के माध्यम के रूप में इस्तमाल होती हैं.महिलाएं टूटती,तडपती.बिलखती और लड़ती हुई दिख जाती हैं.लेकिन हकीकत के जमीन पर उनके पर कतर दिए गए होते हैं.
इन दिनों मीडिया के रुप-स्वरूप में दिनों-दिन परिवर्तन होने लगे हैं.सोशल मीडिया और न्यू मीडिया ने कहर सा मचा रखा है.गाँव,देहात से लगायत छोटे-छोटे शहरों और महानगरों तक इसके चर्चे हैं.सोशल मीडिया ने आम-आवाम को अभिव्यक्ति का एक बहुत ही बड़ा मंच दिया है.
प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वतंत्र और निहायत स्वछन्द विचारों को वेबाकी से रख रहे हैं.
दुनिया,जहाँ के समस्त मुद्दों पर अपने अच्छे-बुरे अनुभवों को साझा करते देखे जा सकते हैं.
मेरे हिसाब से यह एक नेत्रपुस्तिका,मुपुस्तिका,शब्द पुस्तिका,विचार पुस्तिका,विवरण पुस्तिका,विभेद पुस्तिका,चित्रपुस्तिका और अनलिंगी पुस्तिका  के तौर पर देश-दुनिया में अपनी एक अलग मुकाम बनाने में सफल रही है.
इन साधनों को अपने मन मुताबिक प्रयोग करने वालों की एक लम्बी लाइन है.मल्टीनेशनल कम्पनियों से लेकर उपभोक्ता तक इसके कायल हैं.सत्ता से सरकार तक इसके ताकत से वाकिफ हैं.इसके उदाहरणों की लिस्ट भारी भरकम हैं.
एक शोध के मुताबिक ब्रिटेन में आम चुनाव अभियान के दौरान ६०० राजनीतिक उम्मीदवार ट्विटर से जुड़े थे.इनके अलावा सैकड़ों पत्रकार और पार्टी कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया से जुड़े थे.ब्रिटेन की नई संसद के करीब २०० सदस्य ट्विटर पर सक्रीय हैं.इनमें से पांच तो कैबिनेट मंत्री भी है.
वाल स्ट्रीट कब्ज़ा और अन्ना आंदोलन,हुस्नी मुबारक और सालेह सहित गद्दाफी के अतिरिक्त राजशाहों के गद्दी तक इसकी अनुगूँज सुने जा सकते हैं.
धर्म,आस्था और आडम्बर पर कटाक्ष करते लोगों की एक अलग ही जमात है.जो धीरे-धीरे एक फ़ौज का शक्ल इख्तियार करती जा रही है.सोशल मीडिया से खौफ खाती सत्ताएं इसके ताकत के एहसास को पचा नहीं पा रही हैं.इसके मर्केटिंग क्षमता से वाकिफ लोग इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.
चौपटस्वामी नामक ब्लॉगर की लिखी यह टिप्पणी पढ़िए- “(हमारे यहाँ)धनिया में लीद मिलाने और कालीमिर्च में पीते के बीज मिलाने को सामजिक अनुमोदन है.रिश्वत लेना और देना सामान्य और स्वीकृत परम्परा है.उसे रीती-रिवाज के रूप में मान्यता प्राप्त है.कन्या भ्रूण की हत्या यहं रोजमर का कर्म है और अपने से कमजोर को लतियाना अघोषित धर्म है.गणेश जी को दूध पिलाना हमारी धार्मिक आस्था है.हमारा लड़का हमें गरियाये और जुतियाये हुए भी श्रवणकुमार है,पर पड़ोसी का ठीक-ठाक लड़का भी बिलावजह दुष्ट और बदकार है.
यानी कि सौ फीसदी अभिव्यक्ति की एक सौ एक फीसदी आज़ादी !”  

इस दिशा में ब्लॉग की भूमिका सर्वोपरी है.ब्लॉग लिखने वालों की बहुत बड़ी तादाद है.इस क्षेत्र में बी.बी.सी से लगायत हर बड़े-छोटे अखबार,पत्रिका और ई-पत्रिका की भूमिका अहम है.इस पर बहुत से नामचीन लेखक भी लिख रहे हैं.रवि रतलामी छींटे और बौछारे के माध्यम से एक नया मंच तैयार किया है.बालेंदु शर्मा वाह मीडिया के द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नई पहल करते देखे जा सकते हैं.नए लेखक,नए तेवर के दर्शन नित्यप्रति कर सकते हैं.ब्लॉग भी आलकल दिन,सप्ताह और वर्ष के रूप में आने लगे हैं.
ब्लॉगिंग एक ऐसा माध्यम जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी ऐसा माध्यम जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त,और राजनैतिकसामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र है.जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है,न अल कायदा से डरने को.इस माध्यम में न समय की कोई समस्या है,न सर्कुलेशन की कमी,न महीने भर तक पाठकीय प्रतिक्रियाओं का इंतजार करने की जरूरत.त्वरित अभिव्यक्ति,त्वरित प्रसारण,त्वरित प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते ब्लॉगिंग अद्वितीय रूप से लोकप्रिय हो गई है.ब्लॉगों की दुनिया पर केंद्रित कंपनी 'टेक्नोरैटी' की ताजा रिपोर्ट (जुलाई २००७) के अनुसार ९.३८ करोड़ ब्लॉगों का ब्यौरा तो उसी के पास उपलब्ध है.ऐसे ब्लॉगों की संख्या भी अच्छी खासी है जो 'टेक्नोरैटी' में पंजीकृत नहीं हैं.समूचे ब्लॉगमंडल का अकार हर छह महीने में दोगुना हो जाता है.सोचिए आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं,तब अभिव्यक्ति और संचार के इस माध्यम का आकार कितना बड़ा होगा?
इस दुनिया में दखल रखने वालों में नौसिखुओं से लेकर मझे हुए विद्वानों के अपने-अपने ब्लॉग हैं.जिसके द्वारा सभी लोग उन तमाम मुद्दों पर लिख रहे हैं,जो समाज में जड़ जमाए युगों-युगों से मौजूद है.
विद्वानों के अंदाज़ में कहें तो- आइए फिर से अभिव्यक्ति के मुद्दे पर लौटें,जहाँ से हमने बात शुरू की थी.हालाकिं ब्लागिंग की ओर आकर्षित होने के और भी कई कारण हैं लेकिन अधिकांश विशुद्ध,गैर-व्यावसायिक ब्लागरों ने अपने विचारों और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए ही इस मंच को अपनाया.जिन करोड़ों लोगों के
पास आज अपने ब्लॉग हैं,उनमें से कितने पारम्परिक जनसंचार माध्यमों में स्थान पा सकते हैं..?
स्थान की सीमा,रचनाओं के स्तर,मौलिकता,रचनात्मकता.महत्व.सामयिकता आदि कितने ही अनुशासनों में निबद्ध जनसंचार माध्यमों से हर व्यक्ति के विचारों को स्थान देने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है.लेकिन ब्लागिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र.आत्मनिर्भर और मनमौजी किस्म की रचनात्मकता की दुनिया है.वहाँ आपकी 'भई आज कुछ नहीं लिखेंगे' नामक छोटी सी टिप्पणी का भी उतना ही स्वागत है
जितना की जितेन्द्र चौधरी के ओर वर्डप्रेस पर डाली गई सम्पूर्ण 'रामचरित्र मानस' का.'भड़ास' नामक सामूहिक ब्लॉग के सूत्र वक्य से यह बात स्पस्ट हो जाती है...
"कोई बात गले में अटक गई हो तो उअग्ल दीजिए मन हल्का हो जायेगा."
महिलाओं को ध्यान में रखते हए लिखने वालों कि संख्या अनगिनत है.घर-परिवार को सम्भालते हए भी अपनी मौजूदगी से सबको सम्मोहित करने वाली महिलाओं  की तताद लम्बी है.उनमे से कुछ बेहद चर्चित भी है.अभी कुछ दिन पहले ही २७ को फर्गुदियाग्रुप के महिलाओं ने कम उम्र में होने वाली शादियों उसके के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने वाली महिलाओं पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया था.यह भी एक ब्लॉग है जो महिलाओं के लिए विशेष तौर पर काम करती हैं.इसकी मुखिया शोभा जी कहती हैं—“इंटरनेट से जुड़ा ब्लोगिंग एक ऐसा माध्यम है जिससे हम घर बैठे देश में ही नहीं विदेश में भी पहुंचा सकतें हैं.मेरे जैसी गृहणी ने जब इंटरनेट की दुनिया में कदम रखा तो ब्लॉग के जरिये जहाँ मुझे समाज का प्रगति करता चेहरा नज़र आया वहीँ कुछ ऐसी झकझोर देने वाली बुराइयाँ भी सामने आयीं जिससे मैं अनभिज्ञ थी.
हमारे आस-पास ऐसा बहुत कुछ घटित हो रहा होता है जिसकी जानकारी प्रिंट मिडिया या इलेक्ट्रोनिक मिडिया तक नहीं पहुंचती है,अगर कोई पहुँचाना भी चाहे तो जरुरी नहीं है की अख़बार के संपादक उसे छापें या न्यूज़ चैनल वाले उसे दिखाएँ,इसके लिए उनकी अपनी कुछ शर्तें और नियम होतें हैं ,ऐसे में ब्लॉग एक ऐसा मंच है जिसके माध्यम से हम अपने विचार सभी तक पहुंचाने के लिए स्वतंत्र हैं. 
शेष अगले भाग में ....

9 comments:

  1. बहुत रोचक लेखन .........धन्यवाद

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  2. माफ़ कीजिये पर आपके ब्लॉग पर अपने आप चलने वाला यह म्यूजिक बहुत परेशान कर रहा है, कृपया इसको हटा दें, अथवा इस तरह सेट कर दें की यह अपने आप ना चले - धन्यवाद

    10 चीजें अपने ब्लॉग से तुरंत निकालें

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  3. आपके विचारों से सहमत।


    सादर

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  4. सही आकलन चल रहा है।

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  5. आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (14-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
    टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
    मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
    शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।

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  6. शैतान से भगवान् भी डरता है फिर आदमी की भला क्या बिसात..लेकिन यदि कोई दृढ होकर स्वयं अपनी रक्षा करने का दुस्साहस कर ले तो बहुत हद तक सफल हो जाता है और ऐसे दुस्साहसी से समय का रुख बदलते देखे जाते हैं ..
    बहुत बढ़िया सार्थक संवेदनशील प्रस्तुति
    आभार

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  7. विचारोत्प्रेरक संवेदनशील प्रस्तुति....
    सादर।

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  8. आपने अपने ब्लोग के माध्यम से एक ऐसा मुद्दा उठाया है,
    जो सदियों से उपेक्षित रहा और आधा संसार इसी विभीषिका को जिये जा रहा है.
    जागरूकता फैलाने के लिये आपका प्रयास सराहनीय है.

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