महिला,मुद्दे और  ब्लॉग 

द्वितीय भाग
(मात्र चार साल से आगे पढ़ें...)

ब्लॉग परिक्रमा के अनुसार आज ब्लॉग,विश्व की हर भाषा में, हर कल्पनीय विषय मैं लिखे जाने लगे.ब्लॉग को विश्व के आम लोगों में भारी लोकप्रियता तब मिली जब अफ़गानिस्तान पर अमरीकी हमले के दौरान एक अमरीकी सैनिक ने अपने नित्यप्रति के युद्ध अनुभव को ब्लॉग पर नियमित प्रकाशित किया.उसी दौरान एंड्रयू सुलिवान के ब्लॉग पृष्ठ पर आठ लाख से अधिक लोगों की उपस्थिति दर्ज की गई,जो संबंधित विषयों के कई तत्कालीन प्रतिष्ठित प्रकाशनों से कहीं ज़्यादा थी.एंड्रयू अपने ब्लॉग के मुख्य पृष्ठ पर लिखते भी है कि क्रांति महज ब्लॉग में दर्ज होगी.
अब चर्चित ब्लॉगों की संख्या अनगिनत है.इनके मुद्दे घर से बहार,देश से दुनिया तक के विस्तार लिए हुए हैं.
ब्लॉग परिक्रमा के विश्लेषण के मुताबिक हिंदी ब्लोगिंग के शैशव काल ( वर्ष -2003 से 2007के मध्य ) के दौरान जगदीश भाटिया, मसिजीवी,आभा,बोधिसत्व, अविनाश दास,अनुनाद सिंह,शशि सिंह,गौरव सोलंकी,पूर्णिमा वर्मन,अफ़लातून देसाई,अर्जुन स्वरूप,अतुल अरोरा,अशोक कुमार पाण्डेय,अतानु दे,अविजित मुकुल किशोर,बिज़ स्टोन,चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन,चारुकेसी रामदुरई,हुसैन,दिलीप डिसूजा,दीनामेहता,डॉ जगदीश व्योम,-स्वामी,जीतेंद्र चौधरी,मार्क ग्लेसर,नितिन पई,पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल,रविशंकर श्रीवास्तव,शशि सिंह,विनय जैन,वरुण अग्रवाल,सृजन शिल्पी,सुनील दीपक,नीरज दीवान,श्रीश शर्मा,जय प्रकाश मानस,अनूप भार्गव,शास्त्री जे सी फिलिप,हरिराम,आलोक पुराणिक,समीर लाल समीर,ज्ञान दत्त पाण्डेय,रबिश कुमार,अभय तिवारी,नीलिमा,अनाम दासकाकेश,मनीष कुमार,घुघूती बासूती,उन्मुक्त जैसे उत्साही ब्लोगर हिंदी ब्लोगिंग की सेवा में सर्वाधिक सक्रिय रहे.

आज अधिकांशतः व्यक्ति का एक अपना ब्लॉग है.जहाँ पर वह अपनी हर बात को वेबाकी से कहते दिखाई देते हैं.अपर्णा मनोज,शोभा द्विवेदी,विपिन चौधरी,अंजू शर्मा,सुशीला पूरी ये ऐसे ब्लोगर है जो एक कुशल गृहिणी के साथ-साथ लेखन के क्षेत्र में दखल रखती हैं.
मेरे जाँच-पड़ताल का नतीजा ये रहा है कि २०८ ऐसे ब्लॉग हैं,जो महिलाओं के द्वारा लिखा जा रहा है.यह कोई बड़ी हस्ती नहीं हैं,बल्कि घर-परिवार सम्भालने वाली स्त्रियां हैं.जो अपने दिन-चर्या के कामों से निपटकर देश-दुनिया पर अपने मन के सहज,सरल और चुभती घटनाओं और मुद्दों को साझा करती हैं.हालंकि बहुत सी महिलाएं लिख रही हैं.लेकिन एक गृहिणी होते हुए अपने मौजूदगी का आभास बनाए रखने वालों की संख्या सीमित है.
अंजू शर्मा कहती हैं पहले के लेखक और विद्वतजन के नजर में यह एक बाहियात मंच है.लेकिन मुझे लगता है यह एक ऐसा माध्यम है जहाँ से हम अपनी बात बड़ी ही सहजता और कुशलता से रख सकते हैं. 
विपिन चौधरी कहती हैं यही एक ऐसा स्थान है जहाँ से हम अपने दिल की बात कहते हुए भय नहीं खाते हैं.इसी के माध्यम से बहुत से ऐसे प्रतिभाशाली लोगों से रु-ब-रु होने का अवसर भी मिला है.जो की प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से शायद ही मिल पाते.दूर-दराज के गांवों में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार की दुर्दांत व्यथा-कथा की जानकारी और जायजा लेने का एक आसान जरिया मिला है.यह फेसबुक और ट्विटर पर भी लागू होता है.
इनके प्रयोग से चीजों को छिपाना बेहद मुश्किल हो चला है.चाह कर भी कोई इससे अपनी गोपनीयता नहीं छिपा सकता है.
वेशक पत्रकारिता ने समाज के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन में महती भूमिका निभाई है.शुरूआती दिनों में पत्रकारिता के जिम्मे देश की आजादी की सबसे
बड़ी चुनौती थी.इसके माध्यम और मिशन दोनों ही परिस्थितियों के अनुकूल थी.
समय के साथ इसमें बहुत सारे बदलाव होते गये. 
कागज़-कलम की पत्रकारिता एक नए कलेवर के साथ लोगों के समक्ष मौजूद है.इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता के दखल से सुंदर,सुसज्जित और सरल पत्रकारिता का वर्चश्व बढ़ा है.
इन्टरनेट के आगमन से सम्पूर्ण समाज पर द्रुतगति से एक अलग ही प्रभाव पड़ा है. जिस तेजी से इंटरनेट ने अपने पंख पसारने शुरू किये.इससे आभास होने लगा है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यापक बदलाव की लहर एक बवंडर सरीखा साबित होने वाला है.ऐसा ही हुआ नए-नए माध्यमों का प्रभाव क्रांतिकारी अंदाज़ में पड़ा है.
मीडिया के दुनिया में एक नए दस्तक से लोग रु-ब-रु हो रहे हैं जिसके परिप्रेक्ष्य में बहुत से लोग अपनी अहम और सक्रीय भूमिका अदा कर रहे हैं.
ऐसे ही एक नाम है यशवंत माथुर जी का जो की अपने नयी पुरानी हलचल के माध्यम से नए-से नए और नौसिखुए लेखकों को एक बेहतर मंच देने में लगे हुए हैं.वह कहते हैं-ब्लोगिंग एक ऐसा मंच है जहां आप लेखक,संपादक और पाठक की भूमिका निभाते हैं.एक लेखक के तौर पर मनचाहा लिखने की आज़ादी पाते हैं, संपादक के तौर पर अपने ही लिखे को संशोधित करने और एक से अधिक बार पूर्वावलोकन करने की आज़ादी पाते हैं.वहीं एक पाठक के तौर पर आपको दूसरों के लिखे पर तत्काल प्रतिक्रिया देने और उस पर अपने विचार रखने की भी पूरी आज़ादी होती है.आज लगभग हर विषय पर,हर भाषा मे ब्लोगस उपलब्ध हैं,कुछ के बारे मे हम जानते हैं और कुछ से अभी हम अनजान हैं.यदि भारतीय और विशेष रूप से हिन्दी ब्लोगिंग के संदर्भ मे बात करें तो मेरे विचार से अभी ब्लोगिंग मे बहुत कुछ होना बाकी है.”
यही बहुत कुछ होने का संकेत ही विकास को नए आयाम देते हैं.
हिन्दी ब्लोगिंग पर भी जातीयता,क्षेत्रीयता,
 सांप्रदायिकता और नये तथा तर्कसंगत विचारों को को उभरने से रोकने की मानसिकता जिस तरह से हावी होती जा रही है वह निश्चित तौर पर सामाजिक उत्थान के लिये अच्छा नहीं है.ब्लोगिंग का उदेश्य परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को अपनाना,और चेतना जगाने वाला होना चाहिये जबकि इससे भटक कर अधिकांश ब्लोगर्स जहां प्रेम गीतों के रस मे डूब कर वाह-वाह की तालियाँ बटोर रहे हैं वहीं ऐसे ब्लोगर्स को उपेक्षित और तिरस्कृत किया जा रहा है जिनका उद्देश्य वास्तव मे सामाजिक कल्याण है. 
एक सफल ब्लॉग या ब्लॉगर की परिभाषा उस पर आने वाली टिप्पणियों तक सीमित कर दी गयी है जबकि ब्लॉग की सफलता या असफलता का पैमाना उस पर उपलब्ध विषयवस्तु की गुणवत्ता पर आधारित होनी चाहिये.आवश्यकता इस बात की है हम गूगल और वर्डप्रेस द्वारा उपलब्ध कराई जा रही इस मुफ्त की सुविधा का अधिकतम सदुपयोग कर सकें.”
वैश्विक परिदृश्य पर एक नजर दौडाई जाये तो इसके गहराई का थाह सहज ही मिल सके.सर्वोत्कृष्ट कोटि के ब्लॉगों में अपनी पहचान को एक पुख्ता आधार दिया है.जानकीपुल,सृजनगाथा,सबलोग,मोह्हला,नारी,उड़ान अंतर्मन की,नुक्ता चीनी,हमारीवाणी,अपनी माटी जैसे तमाम ब्लॉग और ब्लागर सक्रिय हैं.इन पर लिखे मुद्दे न केवल चर्चा का विषय हैं बल्कि इनको एक नए नजरिये से देखा-परखा भी जाता है.
वरिष्ठ ब्लॉगर अनूप शुक्ला (फुरसतिया) कहते हैं... अभिव्यक्ति की बेचैनी ब्लोगिंग का प्राण तत्व है और तात्कालिकता इसकी मूल प्रवृति है.विचारों की सहज अभिव्यक्ति ही ब्लॉग की ताकत है,यही इसकी कमजोरी भी.इसकी सामर्थ्य है,यही
इसकी सीमा भी.सहजता जहाँ खत्म हुई वहाँ फिर अभिव्यक्ति ब्लागिंग से दूर होती जायेगी.   
कमोवेश यह बातें सही और सत्य प्रतीत होती हैं.अति का अंत सुनिश्चित है.लेकिन स्त्री के संदर्भ में यह बातें वेमानी जान पड़ती हैं.
पाखीके सम्पादकीय में प्रेम भारद्वाज जी लिखते हैं हमारी आज़ादी पर तुलसी दास ने पञ्च सौ साल पहले ही यह कहकर बंदिश लगाई थी-जिमि स्वतंत्र होई बिगरहिं नारीहमने जब भी आज़ादी चाही,उड़ने की कोशिश की,लक्ष्मण रेखा लांघी.हमें बदचलन कहकर रूप से तोड़ने की कोशिश की गयी.सीता की तरह अपहरण कर लिया गया...हम वह सीताएं हैं जिन पर राम और रावण दोनों ने बराबर अत्याचार किया है.

शेष अगले दिन....

1 comment:

  1. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।हमारी तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।



    सादर

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