'भोर-दुपहरी दिन रैन','मन की टीस' एक 'दिखावा'..!


'मन की टीस'

दर्द के गांव का 
आंसू के छावं का 
गुमशुदगी की आहों को  
किससे करूं बयां 
सब कोई ओढें मुखौटा 
नोचता है पल्लू
किसे बताएं अपना 
किसी कहें अजनबी...!
आहत-आत्मा चीत्कार उठी
मोहित ममता हारी है 
आकांक्षा सब पर भारी है 
लाचारी ने बेचारी बनाया...!
अपने-अपने न रहे 
पराये-पराये ही रहे 
किसकी टीस बड़ी 
किसे अपराधी कहें
किसको दोसी ठहराए...!
 
भोर-दुपहरी दिन रैन...!

रतिया कटे गिन-गिन तरवा 
पतिया लिखत भईन भोर 
बटिया जोहत कटे दुपहरिया   
रैन भये दिलवा में मचत हिलोर 
घरवा से निकली गईन बेटी 
देश के छोड़ी लोगवा छावन विदेश 
रूप निरखत हो गईले नैना पागल 
आंसुओं से बहत लोर  
नोटिया क बतिया बिसराव दिन-रतिया 
याद आवे माई क सुरतिया 
बिलसे ला मनवा हुलसे ला छातिया  
गठिया क बतिया खोल देली होखली कंगाल
इहवां क लोगवा न जाने परेमवा
अपना में मगन गांवें-गनवा 
सुनी-सुनी फट जला कनवा
केहू नईखें देवे वाला तानवा(साथ) 
ताबो नाहि लागत जियरा 
हियरा क बतिया रुलावे दिन-रतिया 
कईसे के जाई अपने देशवा 
विदेशवा में जियवा उदास...!

 'दिखावा'

कोमल-कोमल खुसबू में नहाई 
दूर से ही आँखों को भाई 
मखमली छुवन की अदभूत रानी 
हृदय की अनोखी पटरानी 
उसका भी दिन आने वाला है 
कली-कली मुस्काएगी
लोगों के दिलों पर छाएगी 
जिस दिल में पत्थर होगा 
उनके हांथों में उपहार सोभेगा  
होठों पे मधुर गान रहेगी  
हृदय में ज़मी कडुवाहट छटेगी  
पपड़ी सी बनी भावनाए 
पल भर को उखड़ेंगी 
शाम होते झूठे बंधन में जकडेंगी
मानवता कुछ क्षण को गाएगी 
ख़ुशी के नाम पर चिल्लाएगी 
नये साल के नाम पर 
पंखुडियां-ही-पंखुडियां रौंदी जाएँगी...!
                  डॉ.सुनीता 

15 comments:

  1. सभी कविताएं बेहद अच्छी हैं ।
    तीसरी कविता और उसकी अंतिम पंक्तियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित करती हैं।

    सादर

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  2. सभी रचनाएँ बहुत प्रभावी...

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  3. सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  4. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ...............













    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. aap bahut achcha likhti hai..carry onnnnnnnnnn...

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  6. कल 16/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. यशवंत जी...!
    लिंक हेतु चयन / पसंद करने के लिए धन्यवाद .
    मेरा लिखा समाज के लिए समर्पित है .
    मेरे एक-एक 'शब्द'पर साहित्य समाज का अधिकार है.
    आप इसके लिए अधिकृत हैं ....!

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  8. मानवता कुछ क्षण को गाएगी
    ख़ुशी के नाम पर चिल्लाएगी
    नये साल के नाम पर
    पंखुडियां-ही-पंखुडियां रौंदी जाएँगी...!
    आपकी रचना अति सुन्दर है.... !

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  9. bahut prabhaav shali rachnayen hain bahut sundar teenon kavitayen.

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  10. बहुत अच्छी कविता...

    हृदय में ज़मी कडुवाहट छटेगी
    पपड़ी सी बनी भावनाए
    पल भर को उखड़ेंगी
    ..अदभुद रचना.

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  11. सुन्दर भाव.... बहुत प्रभावी रचनाएँ...
    सादर बधाई...

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  12. सभी कवितायें बेहद ही भाव पूर्ण हैं....शुभ कामनाएं !!!

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  13. सारी कवितायेँ अच्छी हैं ...मन की टीस ने बहुत
    प्रभावित किया ..बधाई

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  14. सुनीता जी सादर प्रणाम

    पतिया लिखत भईन भोर कविता सांचो घर से दूर रहे वाला हर एक इंसान के मन के दिल के भाव कही रहल बा , रऔर एह कविता के फेसबुक प शेअर करत बानी

    उमेद बा की भोजपुरी मे आगहू रउरा क़लम से अईसही रचना पढे के मिली

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