कितना सुन्दर
मन का उपवन
स्नेह भरे भ्रमरों की पाँती
मधु गुंजार सुनाती है
सदभावों की 'जुही' हंसकर
रुठा मन हुलासाती है
सदा चरण का मलय समीरण
बाटा करता है 'चन्दन'
मानवता का अमृत पीकर
मन की 'बेला' खिलती है
विनम्रता की खिली 'चांदनी'
देवों के सिर चढ़ती है
बसंती-करुणा छलकाकर
सदा सींचता सुखा मन
श्वेत मालती पान कराती
सत्य अहिंसा का सौरभ कण
ह्रदय में जोत जलाती
पवन झकोरा बन सहलाती
वसुधा-सुधा संग जीवन महकाती
उठो जागों आया नया सबेरा
बजने लगी मदमाती पैजनी
रजनी-सजनी बन इठलाती
धरती के सूरज का दर्शन करवाती
संदली गोधुली को औचक चौकाती
प्रहरी-श्रहरी के रूप-रंग से मिलवाती
हिमगिरी के शिखाओं से तरल-तरंगित
ध्वनियाँ अलौकिक आभा फैलाती
ओस की बूंदें फ़ैल धरा पर
फसलों को लहलाना सिखलाती...
बसंत के आगमन के साथ ही पतझड़ के आने की आहट मिल जाती है.मौसम रुखा-रुखा सा होने लगता है.मानव चंचल हो के विविध रंगों में सराबोर होने लगता है.पेड़ों में लगते बौर फागुनी बयार से मिलकर मन बौरा देती है. मेहमानों के आगत के पद्चाप सुनाई देने लगते है.प्रवासी पंछियों के अस्थाई आशियाने बनाने शुरू हो जाते हैं.
इन मदमाती पुरवाईयों का हार्दिक स्वागत और देशवासियों को एक-एक कुंतल बधाइयाँ...!!!
मन का उपवन
स्नेह भरे भ्रमरों की पाँती
मधु गुंजार सुनाती है
सदभावों की 'जुही' हंसकर
रुठा मन हुलासाती है
सदा चरण का मलय समीरण
बाटा करता है 'चन्दन'
मानवता का अमृत पीकर
मन की 'बेला' खिलती है
विनम्रता की खिली 'चांदनी'
देवों के सिर चढ़ती है
बसंती-करुणा छलकाकर
सदा सींचता सुखा मन
श्वेत मालती पान कराती
सत्य अहिंसा का सौरभ कण
ह्रदय में जोत जलाती
पवन झकोरा बन सहलाती
वसुधा-सुधा संग जीवन महकाती
उठो जागों आया नया सबेरा
बजने लगी मदमाती पैजनी
रजनी-सजनी बन इठलाती
धरती के सूरज का दर्शन करवाती
संदली गोधुली को औचक चौकाती
प्रहरी-श्रहरी के रूप-रंग से मिलवाती
हिमगिरी के शिखाओं से तरल-तरंगित
ध्वनियाँ अलौकिक आभा फैलाती
ओस की बूंदें फ़ैल धरा पर
फसलों को लहलाना सिखलाती...
बसंत के आगमन के साथ ही पतझड़ के आने की आहट मिल जाती है.मौसम रुखा-रुखा सा होने लगता है.मानव चंचल हो के विविध रंगों में सराबोर होने लगता है.पेड़ों में लगते बौर फागुनी बयार से मिलकर मन बौरा देती है. मेहमानों के आगत के पद्चाप सुनाई देने लगते है.प्रवासी पंछियों के अस्थाई आशियाने बनाने शुरू हो जाते हैं.
इन मदमाती पुरवाईयों का हार्दिक स्वागत और देशवासियों को एक-एक कुंतल बधाइयाँ...!!!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वसंत के अवसर पैर वासंती सुंदर रचना.............
ReplyDeleteलो फिर बसंत आई....
ReplyDeleteसुन्दर ............
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
मन में सोंधी सोंधी माटी की महक की अनुभूति कराती बसंत की पुरवाई .. अपने देश की सलोनी पहचान.....अति सुन्दर रचना..... बसंत पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएं....
ReplyDeleteवाह जी वाह ...बेहद प्रभावशाली शब्दावली ...बहुत खूब
ReplyDeleteहर मौसम आएगा जायेगा यहाँ ...रुत भी बदलेगी ...
पर हर दिल अजीज़ वही रहेंगे ...जो लिखेंगे अपने ही दिल की
बहुत सुन्दर बेहतरीन रचना ....
ReplyDeleteaapke blog par aana achha lga or samarthak ban gai . aapbhi aayen mere blog par samarthan ka aamantran hae. mausam ki manohari rachna par bdhai.
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteशब्द और भाव मनोभावन हैं.
लाजबाब प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईएगा.
bahut sundar prastuti
ReplyDeleteहिमगिरी के शिखाओं से तरल-तरंगित
ReplyDeleteध्वनियाँ अलौकिक आभा फैलाती
ओस की बूंदें फ़ैल धरा पर
फसलों को लहलाना सिखलाती...
कितनी प्रोत्साहन देती पंक्तियाँ है...... बहुत बढिया रचना
Bahut sunder kabita likhi hain
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