मैं व्यवस्था हूँ
निर्जीव होकर सबसे सजीव सा रु-ब-रु होता हूँ
रोज़ सुबह से शाम तक कोसा जाता हूँ
धकियाया जाता हूँ फिर पास बिठा के सहलाया भी जाता हूँ
मैं व्यवस्था हूँ
अपने सूरज का कुछ पता नहीं है
अँधेरे से कोई गिला नहीं है
लेकिन अपनों से प्यार-फटकार पाता हूँ
मैं व्यवस्था हूँ
सीना तान के चलता हूँ
बौराए हांथी के मानिंद दौड़ता हूँ
जेब में जब तक पैसे की भरमार है
इज्जत,सोहरत से लबरेज,मालामाल हूँ
मैं व्यवस्था हूँ
करोड़ों के आँखों की उम्मीद हूँ
सबके सपनों की उड़ान हूँ
भागती-दौड़ती जीवन की पहचान हूँ
अपने हाँथों में जब तक कमान हैं...!!!
डॉ.सुनीता
मैं व्यवस्था हूँ
ReplyDeleteसीना तान के चलता हूँ
बौराए हांथी के मानिंद दौड़ता हूँ
जेब में जब तक पैसे की भरमार है
इज्जत,सोहरत से लबरेज,मालामाल हूँ
सटीक पंक्तियाँ
सादर
बढ़िया.
ReplyDeleteएक सकारात्मक विचार.
मैं व्यवस्था हूँ
ReplyDeleteकरोड़ों के आँखों की उम्मीद हूँ
सबके सपनों की उड़ान हूँ
भागती-दौड़ती जीवन की पहचान हूँ
अपने हाँथों में जब तक कमान हैं...
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सार्थक रचना,......
MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
बहुत ही सुन्दर विचार शब्दों के माध्यम से दिया है आपने
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा गया है बहुत अच्छा लिखा है आप ने इस लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् आप को
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