यह क्या...!
गर्मी से त्रस्त नर-पशु बेकल इधर-उधर
चहलकदमी करते वेवश खड़े आस लगाये
ऊँचे-ऊँचे दरख्त आपस में टकराते हुए
भय की अनूठी कहानी के चित्र खिंच रहे
उनके ठुठे पड़े डाली पर मतवाली कोयल कुहुंके
रंग-बिरंगे चिठ्ठे से गाँव गुलज़ार अलमस्त
उन पर लिखे नाम गुमनामी के कगार पर बदहवास
अन्न के मालिक भूख से बिलबिलाते बेहाल
महिमा मौसम की मुक्ति के सागर से अन्मुनाहर
डॉ.सुनीता
01/06/2012 नई दिल्ली
बहुत ही बढ़िया दीदी!
ReplyDeleteसादर
कल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
काफी दिनों से अनेक जिम्मेदारियों के बीच नियमित रूप से सब से रूबरू होना सम्भव नहीं हो पा रहा है.उम्मीद है ब्लॉग के मित्र इस विवशता को समझेंगे...
ReplyDeleteजल्द ही लौटूंगी...
नई-पुरानी हलचल का इन्तजार हमेशा रहता है...
भविष्य में भी रहेगा...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,सुनीता जी,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
बहुत ही भावपूर्ण रचना ...बधाई
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