कुछ न कुछ
घटना दर घटना रोज होते हैं
सुनसान सड़कों पर बच्चे चिल्लाते हैं
दूर खड़ी माँ फफ़क-फफ़क कर रोती है
क्रूर सामज में यह हत्या आत्महत्या नहीं होती है.
गम-ए-गुबार क्या था खबर नहीं
ख्वारि में तन्हा चले थे मंजिल को
सफर मुकद्श में युहिं सबे दिन गुजर जाएगा
मेरे मरने के बाद सौगातों की यादें/अरमाने मिटा देना.
राह निकलेगी इसी ख्याल से बैठे-बैठे सदियाँ न बिताना
कोई रास्ता निकलेगा इसकी उम्मीद नहीं खोवाना
जमाने के जिल्लतों का क्या ?जलालत में जलने का हुनर रखना
अपने सरीखे किसी और को खाई के समुन्द्र में न ठेलना.
दिल-ए-नादां का रास्ता सीधा-सीधा है यह याद रखना
बहकाने के मजू तमाम हैं उनके चिरागों से न डरना
चमक चाँदनी में भी होती है उसके रोशनी से धोखा न खाना
सूरज सी तेज समझ सुई में धागे पिरोने का इरादा न करना.
(अधूरा)
डॉ.सुनीता
21/07/2012
8:55
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
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