कोताहियों का सिला
हमारी कोताहियों का सिला है
ये प्रचंड धूप जो हमें मिला है
उजाड रहे हैं बाग़-बगीचे
प्रकृति रुष्ट है हम सबसे
टूट रही हैं सारी वर्जनाएं
बिगड रही है भविष्य की सम्भावनाएं
आज तो फिर भी ठीक है
कल की चिंता सता रही है
हमारी करनी हमें ही सिखा रही है
करुण-क्रंदन से प्रकृति जगा रही है
छाया में पले बढ़े हैं फिर भी अनजान
स्वार्थ में अंधे हो करते हैं मनमान
अपने किये की ये सजा है
नीर बीन जीवन में क्या मजा है
तब भी चेत नही रहे हैं हम
एक-एक इंच जोड़ रहे हैं हम...!!!
अनुत्तरित...
दलित देश के ललित श्रृंगार हैं
दौलत-वैभव,जग में आपार है
फिर क्यों ?
सौतेला व्यवहार है
अवसर के होड़ में खड़े हाशिए पर तमाम हैं
आते-जाते दौर में उठती बातें आम हैं
फिर क्यों ?
झोली में आती उपेक्षा के कतार हैं
धर्म,जाति-पाति,प्रान्त के नाम पर
काट-बाँट रहे हिस्से हजार हैं
फिर क्यों ?
नित्य-प्रति हमी पर होता अत्याचार है
किसको मिला,क्या ओहदा,कौन यहाँ क्या है?
जिसे बयां करते लोग अपने अनुसार हैं
फिर क्यों ?
विराम न लगा,जो दुर्व्यवहार है
चिंता-चिंतन के उठते मुद्दे रोज़ हैं
निर्णय लेते कूपमंडूक,गढते झूठे मिथक आज है
फिर क्यों न ?
कचोटे ये सवाल जो बने नासूर हैं...!!!
डॉ.सुनीता
हमारी कोताहियों का सिला है
ये प्रचंड धूप जो हमें मिला है
उजाड रहे हैं बाग़-बगीचे
प्रकृति रुष्ट है हम सबसे
टूट रही हैं सारी वर्जनाएं
बिगड रही है भविष्य की सम्भावनाएं
आज तो फिर भी ठीक है
कल की चिंता सता रही है
हमारी करनी हमें ही सिखा रही है
करुण-क्रंदन से प्रकृति जगा रही है
छाया में पले बढ़े हैं फिर भी अनजान
स्वार्थ में अंधे हो करते हैं मनमान
अपने किये की ये सजा है
नीर बीन जीवन में क्या मजा है
तब भी चेत नही रहे हैं हम
एक-एक इंच जोड़ रहे हैं हम...!!!
अनुत्तरित...
दलित देश के ललित श्रृंगार हैं
दौलत-वैभव,जग में आपार है
फिर क्यों ?
सौतेला व्यवहार है
अवसर के होड़ में खड़े हाशिए पर तमाम हैं
आते-जाते दौर में उठती बातें आम हैं
फिर क्यों ?
झोली में आती उपेक्षा के कतार हैं
धर्म,जाति-पाति,प्रान्त के नाम पर
काट-बाँट रहे हिस्से हजार हैं
फिर क्यों ?
नित्य-प्रति हमी पर होता अत्याचार है
किसको मिला,क्या ओहदा,कौन यहाँ क्या है?
जिसे बयां करते लोग अपने अनुसार हैं
फिर क्यों ?
विराम न लगा,जो दुर्व्यवहार है
चिंता-चिंतन के उठते मुद्दे रोज़ हैं
निर्णय लेते कूपमंडूक,गढते झूठे मिथक आज है
फिर क्यों न ?
कचोटे ये सवाल जो बने नासूर हैं...!!!
डॉ.सुनीता
पहली कविता जहां प्रकृति की अनमोल कृति यानि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने के लिए सचेत करती है वहीं दूसरी कविता एक गहन चिंतन उपस्थित करती है और इन अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर भी अपने वोट की ताकत से हम ही दे सकते हैं।
ReplyDeleteसादर
बहुत सारे प्रश्न.........
ReplyDeleteसोच जरूरी है..............
और सोच का लिये.........
सोच का बाद.....
शब्द भी जरूरी है.....
वो मेरे पास ढूंढे नही मिलते हैं....
चुराउंगी.... निकालुंगी आप ही की कविता से
सादर
यशोदा
sarthak post hae mere blog par aapka svagat hae.
ReplyDeletebahut hi prabhavshli rachana gahan chintan ke liye vivash karti hui ...badhai ke sath abhar bhi.
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