जब दीप जली
फिजा में शाम ढली
घर में उदासी छाई
तन में पसीना छूटा
हृदय में हुक उठा
घरती में हलचल मची
आकाश में गर्जना हुई
बादलों में तर्जना आई
आज किसी की अग्निपरीक्षा है
जबाब दिया तपसना ने
जब घर गिरता है...
ऐसा ही कुछ होता है
सब कुछ डोल जाता है
तरन्नुम रुक जाती है
तस्वीर नया उभरता है
पुराने खिजा बिखरते हैं
वायु,पृथ्वी में एक कोलाहल होता है
औचक द्वंद छिड़ा सितारों में
सवाल उठा मन में
क्या यहाँ सब गिरवी है
समझने-समझाने में अँधेरी रात है
एक अवज्ञा में चीत्कार है
क्योकि!दीप ज्योति से खाली है
प्रकाश की किरने भी कैद हैं
अलबेली सुबह अभी कोसों दूर है
ऐसे ही पल मन को छलते हैं
जब घर गिरता है....
बहुतों ने समझे चट्टाने खिसकी हैं
लेकिन अरमाने यहाँ घिसकी हैं...!
मासूम बच्चों की चीख-पुकार है
दिन ढलते लोग अपने घर को गए
दीप गए रौशनी लेने
शाम गई शबनम ढूढने
बेचारे अभागे गए छावं लेने
जब घर गिरता है...
सब खो जाता है
निगाहें बदल जाती हैं
पडोसी आँख चुराते है
रिश्ते नाक-भौ बनाते हैं
भूखे बच्चे बिलख-बिलख रोते हैं
देखने वाले अफ़सोस जताते हैं
आगे बढ़के दर्द नही सहलाते हैं...!!!
'डॉ.सुनीता'
नोट- मेरे बालपन में मेरे आँखों के सामने हमारा घर गिरा था.उस वक्त बहुत बड़े तो न थे और न ही इतने समझदार फिर भी इतने तो थे ही कि मौजूदा हालत को पंक्ति बद्ध कर सकूं.यह घटना मेरे मन के कोने में एक कसक की तरह सदैव बैठी रही.मैंने उसी समय टूटे-फूटे शब्दों में लिख रखा था आज आप सबके साथ ज्यों की त्यों साझा कर रही हूँ....
फिजा में शाम ढली
घर में उदासी छाई
तन में पसीना छूटा
हृदय में हुक उठा
घरती में हलचल मची
आकाश में गर्जना हुई
बादलों में तर्जना आई
आज किसी की अग्निपरीक्षा है
जबाब दिया तपसना ने
जब घर गिरता है...
ऐसा ही कुछ होता है
सब कुछ डोल जाता है
तरन्नुम रुक जाती है
तस्वीर नया उभरता है
पुराने खिजा बिखरते हैं
वायु,पृथ्वी में एक कोलाहल होता है
औचक द्वंद छिड़ा सितारों में
सवाल उठा मन में
क्या यहाँ सब गिरवी है
समझने-समझाने में अँधेरी रात है
एक अवज्ञा में चीत्कार है
क्योकि!दीप ज्योति से खाली है
प्रकाश की किरने भी कैद हैं
अलबेली सुबह अभी कोसों दूर है
ऐसे ही पल मन को छलते हैं
जब घर गिरता है....
बहुतों ने समझे चट्टाने खिसकी हैं
लेकिन अरमाने यहाँ घिसकी हैं...!
मासूम बच्चों की चीख-पुकार है
दिन ढलते लोग अपने घर को गए
दीप गए रौशनी लेने
शाम गई शबनम ढूढने
बेचारे अभागे गए छावं लेने
जब घर गिरता है...
सब खो जाता है
निगाहें बदल जाती हैं
पडोसी आँख चुराते है
रिश्ते नाक-भौ बनाते हैं
भूखे बच्चे बिलख-बिलख रोते हैं
देखने वाले अफ़सोस जताते हैं
आगे बढ़के दर्द नही सहलाते हैं...!!!
'डॉ.सुनीता'
नोट- मेरे बालपन में मेरे आँखों के सामने हमारा घर गिरा था.उस वक्त बहुत बड़े तो न थे और न ही इतने समझदार फिर भी इतने तो थे ही कि मौजूदा हालत को पंक्ति बद्ध कर सकूं.यह घटना मेरे मन के कोने में एक कसक की तरह सदैव बैठी रही.मैंने उसी समय टूटे-फूटे शब्दों में लिख रखा था आज आप सबके साथ ज्यों की त्यों साझा कर रही हूँ....
निगाहें बदल जाती हैं
ReplyDeleteपडोसी आँख चुराते है
रिश्ते नाक-भौ बनाते हैं
भूखे बच्चे बिलख-बिलख रोते हैं
देखने वाले अफ़सोस जताते हैं
आगे बढ़के दर्द नही सहलाते हैं...!!!
घर गिरने से उठी टीस को बखूबी शब्द दिये हैं आपने।
बहुत ही मार्मिक।
सादर
जब घर गिरता है...
ReplyDeleteसब खो जाता है
मार्मिक!!
achha varnan
ReplyDeleteजब घर गिरता है...
ReplyDeleteसब खो जाता है
निगाहें बदल जाती हैं
पडोसी आँख चुराते है
रिश्ते नाक-भौ बनाते हैं
....बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
purane ghav ko sunder shabdo mein dhala hai.........
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteदेखने वाले अफ़सोस जताते हैं
ReplyDeleteआगे बढ़के दर्द नही सहलाते हैं...!!!
हृदयस्पर्शी ..... सच में कितना दुखद है घर गिरना ....
बहुतों ने समझे चट्टाने खिसकी हैं
ReplyDeleteलेकिन अरमाने यहाँ घिसकी हैं!
नए पुराने हलचल से पहली बार आना हुआ आपके ब्लौग पर.. बहुत अच्छा लिखा है आपने.. बधाई!
बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteभावुक अभिव्यक्ति..बाल मन भी कितना संवेदनशील होता है...
सस्नेह.
marmik prastuti
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना कुछ नया सीखने को मिला.
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