हर किसी के ज़िन्दगी के एक-एक क्षण सुखद नहीं होते हैं.
जीवन तमाम उतर-चड़ाव के समागम का ही नाम है.
हा! कुछ एक अपवादों को छोड़कर कहा जा सकता है कि जीवन रंग-विरंगी अनुभवों का एक जिन्दा तस्वीर है.
दुनिया में सबको सब कुछ मिलाना जरा मुश्किल है.
जिन्हें आराम से सब-कुछ मिल जाता है तो वह उसकी कदर नहीं करते हैं.
ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें माँ की गोद-पिता का प्यार और भाई की झिड़की,बहन की फटकार नही मिली है.
जिन लोगों को मिली उन सबने अपने स्टेटस के नाम पर कुर्बान कर दिया.
बनते-बिगड़ते,संवरते,सुधरते और मिलते-बिछड़ते रिश्तों के इन्ही भावनाओं की झलक इन पंक्तियों में सहज ही देखे जा सकते हैं.
चिराग..!तू मेरी काया मैं तेरी छाया
हाय! हमने कैसा यह जीवन पाया.
जिसको पाकर अपना सुध-बुध खोया
उसने ही मुझे छल कर दोहराहे पर पहुचाया.
दोनों की है चाह अनोखी,ईश की अविरल माया
जब-जब देखा उसको अपने रग-रग में समाया.
ह्रदय ने पुलकित होकर हुँक लगाया
किस्मत की लकीरों ने दुनिया में तुझे-मुझ से मिलाया.
घर की दीवारे नाच उठी देख मुखड़ा सलोना
आज चिराग जला दो कोना-कोना चिल्लाया.
कंचन की कसौटी ममता का आंचल गाया
आज न जा तू बस मेरी गोदी का तू एक छाया.
चला गया..!
दो पल रहे उदास एक पल ख़ुशी रही
इक बेवफा से अपनी बड़ी दोस्ती रही.
उसको गुरुर था हुस्न पर मुझको मान था इश्क़ पर
अनकही दिवार अपने बीच शादियों खड़ी रही.
अब ख़तम हो रही है एक मुलाकात की घडी
शायद फिर कभी मिलेंगे अगर ज़िन्दगी रही.
तेरे जजबात,ख्यालात और पाकीजगी का शुक्रिया
बिखरें हैं तो क्या हुआ उम्मीदे-ए-दामन यूहीं सजी रही.
इस नामुराद शहर से वो चला गया है लेकिन,
उसकी शोख सरगोशी सदियों यादों में बसी रही.
नशेमन-यार का संदेसा जब तक न मिला
गिले-शिकवे और अश्कों की चिलमन आँखों में जमी रही.
जब तक वह हमारे दरवाजे का शोभा रहा
उस दम तक घर रोशनी में नहाई रही.
चला गया चमन छोड़ कर सियासत के लिए
जाने क्यों हर तरफ सन्नाटा की सी विखरी रही.
माँ..!
जब-जब हंसा दुनिया ने ठहाका लगाया
मैं चीखा दरो-दिवार ने रोष जताया.
जब गमसुम होकर एकटकी लगाई
सबने अजब-गजब की दौड़ लगाई.
जब अकड़ के सीना ताने चला
घमंडी कहकर मजाक उड़ाया.
जब दर्द से दहाड़ कर सर टकराया
पीड़ा के मर्म से माँ ने शोक मनाया.
डॉ.सुनीता
कविता अच्छे मनोभावों को प्रकट करती है।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर