कोई आता है




मद्धम एक गूंज सुनाई देती है
चौक देखती चौखट से छिप बोली
खोलो झोली एक अनोखी मीठी बोली
देखो धरा पर हौले-हौले से कोई बढ़ आता है

सौंदर्य से भरा पंख फैलाये सूरज निकला
पीछे लगे बहेलिये पंथ निहारने
कब आये गोल-मटोल चिकना फल
मन में मुस्काएं तरकीब बनायें-बिगाडें

पवन डोलाए डलिया दर्पण शर्माए
सुनों हे खग-मृग कौन देश के राजा
आवे बजावत बजा घन-घन घम-धाम
धनुष तृष्णा का साथ,हाथ दिए बज्राशन

भोर वैभव को बटोरते तारे गण
अगडित अंगों के रंगों से सजे-धजे रथ पर सवार
लावण्य बिखेरते बंधू-मंधू के मधु लुटाते
मंथर-मंथर वायु के लय पर ललित ललाम दिखाते

लहू-बहु के रूप में मधुबन की मुरली-सुरीली
सुहावन-भावन भवन सुझाते उलझे जीवन के तार सुलझाते
सोये भय,भौरे के भाग्य को भोग-जोग के रोग बताते-हटाते
बटोर वरुण के तरुण रूप में खोये प्रिय के तलास में निकसे-विकसे...

(अधूरी )
 डॉ.सुनीता
०६/१०/२०१२
९:३२ सुबह
 

3 comments:

  1. ऐसा लगता है कि वास्तव में कोई आ रहा है!
    अच्छी रचना !
    नवीन रचना
    अन्तर्गगन: पतिता
    http://dhirendrakasthana.blogspot.in/2012/10/blog-post_4.html

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  2. बहुत ही प्यारी रचना

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  3. भावो को संजोये रचना......

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