सब कुछ भुला देना


ज़िद पर अडना बच्चे के मानिंद आसान है
मुश्किल है उसकी तरह सब कुछ भुला देना
टूट जाए खिलौना तो छलक पड़तीं हैं आँखें
पल में भुला देते हैं उनकी एहसासें
हँसतें हैं होंठ से चाँद सा रोते हैं दिलों से सूरज सरीखा
जब कोई झूठे से कह दे ए नहीं तेरी शादें
हम सोचते हैं मुस्तकबिल की जोड़ते हैं पाई-पाई
वो रौशन होते हैं इक-इक पल के लिए
पलकों के मोती छुपाये महफ़िल से निकलते हैं गुनगुनाते
ख्वाहिशों के जंगल को जमीन में दफन किये बीज से
बाजारी दुनिया में टहलते हैं बेतकल्लुफ़
गम के गुबार को उड़ा देते हैं गुब्बारे के संग
गुमसुम खुशी को खिला के घोल देते हैं गुलाबों में
रंजिशों के साजो ओ सामान को समुद्र में उछाल देते हैं
मुस्कुराते चिलमनों से चमन चहकाते निकल जाते,गगन की यात्रा करते
बेकाबू हालात को हलक से नीचे न उतरने दे विषकंठ बन
तारों के सैर करते ख़्वाबों के नीले आसमान में छपक-छैयां करते
पंक्षी के पंखों से हांथो की डोर बनाते दूर-दूर फैले बदलों को समेटे
सिकुड़ते सिलवटों के सीलन सीते काई लगे बवंडर को बटोरते
वक्त के नज़ाकत को नजरों में कैद करते फासलों को फसल करते
कलम करते पुष्पों के पुलकित पुराणों में परलोक ढूंढते
ढोते बोझ को उल्कापिंड के अग्नि में समर्पित कर स्वर्ग की राह बनाते
कड़ी मेहनत के बूते बूंदों को टक्कर देते कहते कर्म करों करुना का प्रचार नहीं
आत्मबोध से बुद्ध के समाधि तक बिचरते उपदेशों के सागर को हिलोर-हिलोरते
हुडदंग के धूल उड़ाते धवल चादरों में लिपटे उमंग के सुगंध में खो जाते
सांसों के तार पर ताल ठोकते ठिठकते ठहराव को ठेलते-ठेलते ठिकाने लगाते.


डॉ.सुनीता 
०५/०७/२००६  
(यादों के जेहन में ठहरे ज़ज़बात डायरी की पन्नों से )

6 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. सुन्दर रचना

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  3. सच बच्चों की तरह पल भर में सबकुछ भुला देना कतई आसान नहीं होता ..कटु क्षण भले ही भूलना चाहे लेकिन उनकी अमित छाप कहीं न कहीं दबी रह जाती है ...
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  4. लाजवाब....गहन अर्थ लिए हुए,अतिसुंदर रचना |

    मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में,समय मिलें तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
    आभार...|

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  5. अनुपम रचना , मन की गहराइयों से लिखी बच्चों की झावना की सटीक प्रस्तुति.|मेरे ब्लॉग पर आपका इंतज़ार है |

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