इधर पधारे

डॉ.सुनीता 
२९/०७/२०१२ नई दिल्ली 
रात ११:५५ 

खुद पर व्यंग करते हए.कुछ और ही कह बैठे जिसका मतलब समझने की जरुरत आन पड़ी है.

मिल जा मेरे बाप
कहाँ चले गए आप
हेर-हेर के हो गए परेशान
किस मृत्यु के चिरनिद्रा के हो गए शिकार
खाकर भंग या पीकर रम
पड़ गए कौन से दुनिया के भ्रम में
चकला घर से कदम बहक गए हैं ?
या चौबारे के चौपाल से लहक गए हैं
लम्पटता की हद है भाई !
माँगा आलू लाये गुड़
समझ न आये मंत्री-तंत्री के गुण
गलबहियां डाले फिरते हो आज
काम न काज बने हुए हैं दुश्मन अनाज
कल मारेंगे घुमाके शब्दों के चार लात
निकल जायेंगे पेट में पैठे सारे भात
चक्रव्यूह रचते खुद फंसे कुचक्र के जाल
बाले तेरे लाल के चित्त से न उतरे हाल
चौसर खेलते मियां स्वर्ग सिधारे
आप क्यों अपनी जीवन लीला ले इधर पधारे...

1 comment:

  1. बेहतरीन व्यंग ,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,

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