जब भी मिलतीं  

सरे राह चलते हुए 
जब भी मिल जाती हैं 
अनजान राहों पर भी रिश्तों की अम्बार लगा जाती हैं 
जीवन के कठिन पथ पर अमराई सी मंडराती हुई 
अग्निपथ की अमित कहानी लिखती आगे बढ़ जाती हैं  

जब भी मिलती युगों-युगों के दर्द बहा देती हैं 
सागर के खरे जल से नैनों की गंगा लहरा देती हैं 
हिचकोले लेते भावनाओं पर बज्र सरीखे चट्टानें चिपकाती 
मुस्काती मधुर यामिनी की गीत-गज़ल बन मधुवन में मदमाती 
मोर-मुकुट ताने नाचे मौसम के धुन पर धूल उड़ाती जाती हैं 

जब भी मिल जाती अनहोनी कहानियों की पटकथा लिख देतीं 
बोती नीम-शहद की उम्मीद में दिन-रात एक कर चंचल चकला चलातीं 
चारु लता की चतुराई से चितवन की चमक चुरातीं फिरतीं तितली सी 
मोहक अदा से विदा लेती हर लेती बुद्धि की सुझाती सुमेर की बाते 
धन कुबेर बन फिरतीं बातों से बह्लातीं बकझक में जीवन की हर दुःख बहातीं जातीं हैं 

(अधूरा )

डॉ.सुनीता 
१७/०७/२०१२ 
४:१९ 

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