कई बार देखा




डॉ.सुनीता ०९/०६/२०१२

एक बार नहीं कई बार देखा है
जीवन के पतझड़ में आंसुओं
की
झिलमिल अदभुत रेखा है

चलते-चलाते चौखट तक आती आवाजें
चाक पर रखे मिटटी के धोने सा घुमती
पृथ्वी के धुरी पर चक्कर काटती कुछ याद दिलाती हैं

हम उलझे रहे कर्मपथ के अमराई में
तरुण चांदनी पुकारे जीवन के अंगनाई में
सूरज के किरणे छेड़े मदमाती गीत सुनाएँ समझाती हैं

दौड़ती-धुपती धूल से यह कंचन काया
मोह के बंधन अनमोल अलख जगाते
चिंतन के पट खोले,बोले ऐसे जीवन के गांठे खोले हैं

मानसिकता के ओट से विश्वास के घूँघट पट उघारे
चलते आये भ्रम के बादल को छेड़े बोले
अग्नि के फेरों में जीवन को कैसे-कैसे लपेटे है

बार-बार जल के भी जलन न गई
जंगल के जूनून में जल-जल को मारे-मारे
भटकते-भटकते भाव चिन्ह को युगों-युगों के लिए छोड़ा है
  

8 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया।



    सादर

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  2. कल 10/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. भाव पूर्ण रचना

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  4. हम उलझे रहे कर्मपथ के अमराई में....

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ......बहुत खूब

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  5. बहूत खूब....
    बहूत हि बढीया लिखा है....

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  6. सुन्दर पंक्तियाँ

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