अमर कृतियों का ‘निर्मल’ संसार


हिंदी साहित्य के विराट सागर में अपने रचनाओं से हलचल पैदा करने वाले निर्मल वर्मा ३ अप्रेल १९२९ को शिमला के हसीं वादियों में अवतरित हुए थे.५ अक्तूबर २००५ को अपनी कलम समेट कर इस दुनिया से विदा ले लिया था. अपने लिखे शब्दों से अब भी मौजूद हैं.उनकी अभिव्यक्तियाँ एक जिन्दा मिसाल हैं.आज उनका जन्म दिवस है.उनके रचनाओं के आलोक में समर्पित है हृदय की कोमल संवेदनाएं...!
इसमें उनके हर उस रचना का जिक्र है जो उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन काल में लिखा था.आप सब उसे पहचाने और बताएं यहाँ कौन-कौन सी कृतियाँ अपनी मौजूदगी दर्शा रही हैं...


सृजन के अस्तित्व से धरा पर वे दिन आयें हैं
परिन्दें चहचहा के दूसरी दुनिया को सुना रहे थे.

     उभरते स्वर से हवा में बसंत लहरा रहे थे
     वादियाँ गा रही थीं मायादर्पण के अलोक में.

एक चिथड़ा सुख में जीवन का मर्म सन्निहित है
एक अनुगूँज गांव के लाल टीन की छत से आती है.

      अतीत के डयोढ़ी पर पिछले गर्मियों में गुजारे थे
      अब वहाँ कौवे और कालापानी की बातें होती हैं.

सुखा पड़ते ही तड़प उठते किसानों के दर्द
बीच बहस में,चीड़ों पर चाँदनी से दस्तक देते हैं.

    दिल में लगे आग के गुबार से इंसानों के जंगल जल रहे हैं
    धुंध से उठती धुन ने शताब्दी के ढलते वर्षों से आवाज दी.

कला का जोखिम उठाने वाला वहिष्कृत किया जाता है
घुटन के चुभन से सीढियों पर सिगरेट जलाता है.  

      नम आँखों से निहारते हैं भारत और यूरोप
      ले चला है प्रतिभूमि के क्षेत्र से एक जलती साड़ी.

ढलान से उतारते हुए ऊँचाइयों का संदेस दिया
मीठी-मीठी यादों के पाती से गुलदस्ता पेश किया.
         
      रात का रिपोर्टर अपनी पोटली समेट कर
      जीवन के अंतिम अरण्य पर निकल पड़ा है...!

                                  डॉ.सुनीता 
                             ०३/०४/२०१२ 

2 comments:

  1. निर्मल वर्मा जी एवं उनकी लेखनी को नमन......

    बहुत शुक्रिया सुनीता जी.

    अनु

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  2. बढिया प्रस्तुति।आभार।

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