विराट लहरों के मानिंद बेकल,बेचैन,बेवश और अशांत,'शेखर'..!


'शेखर' समुन्द्र की विराट लहरों की उमड़ती-घुमड़ती धाराओं के मानिंद बेकल,बेचैन,बेवश और अशांत है.संसार के सारे गुण-अवगुण को अपने अन्दर समाहित करने वाली सागर हमेशा अपने कल-कल में खामोश गीत गाती-गुनगुनाती है.ठीक वैसे ही शेखर दुनिया के दाव-पेंच से अनजान,अज्ञान और अपरचित खुद को व्याकुल पाता है.जाने क्यों उसको यह समाज एक छलावा और रहस्यमई प्रतीत होता है.
पराकाष्टा के हद तक उसकी जिज्ञासा का वाजिब जबाब किसी के पास नहीं है.हरदम,हरपल एक प्रश्न उसका पीछा करती रहती है.जिससे वह बच नही पाता.वह जानना चाहता है कि यह दुनिया क्यों है,किसने बनाई हैं,किस लिए,किसके लिए और उद्देश्य और क्यों है.?
उसके मन में अनगिनत सवाल हैं लेकिन उत्तर कोई नही बता पता की ऐसा क्यों है.
उसके इन उट-पटांग बातों से किसी को कोई मतलब नही है.सच्चाई तो यह है उसके इसी उत्सुकता में जीवन,ज़मीन,समाज और प्रकृति के रहस्य विद्यमान हैं.
हम इस बात से कत्तई इनकार नही कर सकते की बच्चों के मासूम सवालों में अनंत क्रियाएं छुपी होती हैं जिसे हम लोग भी नहीं समझ पाते हैं.
ऐसा ही कुछ शेखर के साथ भी था.उसे अपने उम्र से पहले ही हर उस चीज़ को जानने की बेहद उत्कंठा थी जिसके कारण उसे नित्य-प्रति डांट पड़ते रहते हैं.पिता की फटकार उपहार स्वरूप मिलती सो अलग से.उसके अंतर्मन में एक अजीब सी हलचल थी कि जिस चीज को उससे छिपाई जाती उसे वह प्रयोग के माध्यम से पता लगाने की भरसक कोशिश करता ही रहता. उसने अपने इस चेष्टा को कभी किसी के कहने से गलत मानने के बावजूद भी जुटा रहता.इतना ही नहीं बल्कि दूगुने मेहनत के साथ उसका हल ढूढ़ निकालने का प्रयास तेज़ कर देता था.
'अज्ञेय' के उपन्यास 'शेखर एक जीवनी' का शेखर इन्ही गुणों का खान नजर आता है.
प्रकृति,परिवर्तन,परिवार,प्यार,समाज और सम्मान के सभी पहलू को बखूबी जांचता-परखता है,फिर अपने औचक सवालों की झड़ी से अचम्भित भी करता रहता है.उपमानों के माध्यम से
कथा का संयोजन मन को प्रफुल्लित और एकटक पढ़ने को मजबूर करती है.शशि और शेखर दोनों ही इसके आधारविन्दू हैं.जिनके परिप्रेक्ष्य में ढ़ाचागत बनावट के सहज ही दर्शन होते हैं.
सम्पूर्ण कथा में उत्सुकता के इतने सारे सोपान आते हैं की कहीं से भी बोरियत नहीं महसूस होती है.
संजोये स्मृतियों के स्वर्णिम क्षण बार-बार मन को मोहित करते जाते हैं.जगह-जगह मानवीय भावात्मक वर्णन ध्यान आकर्षित करते हैं.अंत आते-आते जिज्ञासा की पिपासा शांत होने के बजाय कोलाहल मचा देती है.दो भाग में प्रकाशित यह रचना अपने-आप में एक अनूठी कृति है.
                               डॉ.सुनीता

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