'अमीर खुसरो' की नज़र में 'भारत'

दिन-दुनिया के सच्चे प्रेमी आराधक और शुभचिंतक 'अमीर खुसरो' बहुआयामी व्यक्तिव के स्वामी रहे हैं.
आपका असली नाम 'अबुल हसन यमीनुद्दीन' था.इन्हें 'तूती-ए-हिंद', 'मलिकुश्शोरा'
और 'सुल्तान',तुर्क' के उपनाम से संबोधित किये जाते हैं.652  हिजरी (3मार्च 1253) के आस-पास 'पटियाला'जिला के एटा(उत्तर-प्रदेश)में अवतरित हुए थे.लेकिन इनके जन्म को लेकर विवाद रहा है.कुछ लोगों ने इन्हें दिल्ली की पैदाइश करार दिया है.जो भी हो इस विश्वकवि ने अपने अदभूत प्रतिभा का लोहा कई-कई शासकों के शासनकाल में मनवाया है.
अपने 'गुरु'के अनन्य गायक खुसरो ने भारत देश की एक अलग ही व्याख्या की है.
इतिहास साक्षी है की पूर्वजों ने देश के श्रृंगार में अहम् भूमिका निभाई है.इस सन्दर्भ में खुसरो का योगदान कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं है.आपको कई रागों,साजों,बाजों और बाद्य-यंत्रों के खोज कर्ता का श्रेय दिया जाता है.खुसरो ने हमेशा ही खुशदिली से हर उस चीज का स्वागत मन से किया है जो प्रकृति ने सहर्ष दिया है.धरती के स्वर्ग को लेकर कई तरह के उदहारण भी दिए हैं.कुदरती प्रज्ञा के मालिक 'खुसरो' ने भारत के सन्दर्भ में उल्लेख किया है..

'किश्वरे हिंद अस्त बहिश्ते बज़मी'
अर्थात 'भारत को पृथ्वी का स्वर्ग मानते थे'.

'दीं ज़ रसूल आमदाहे काई ज़ मर दीन'
हुब्बेवतन ह्स्तज़ ईमां बयकिन.

स्वर्ग के सन्दर्भ में उन्होंने सात दलीलें दी हैं-

१-अव्वलिश इनस्त कि आदम व् जिनां
चूं ज़ असी खुनगई याफत चुनां.

२-गर न बहिश्ते अस्त हमीं हिंद चिरा
अजपये ताउस जनां गश्त सरा.

३-हुज्जत ईनस्त सुययम गर शके
कामदन मार ज़ बागे फलकी.

४-हुज्जते चहारुम मगर इन्स्त कि चूं
जद कदम आदम ज़ हद हिंद बरुं.

५-हिंद हमा साल कि गुलरुये बुवद
जी बुद व् गुल हमा खुशबू बुवद.

६-बस हमा हाल ज़ख़ुबी बबिही
हिंद बहिश्त अरुत बा सबात रही.

७-गर्चे कि बर निस्बते फिरदोशि निहां
बा हमा  लुत्फिश चूं जिंदा अस्त जहां.

अपने गुरु के लिए इतने बिह्वल रहते थे कि उनके मरने के बाद ही आप से आपकी ज़िन्दगी भी रूठ गयी.ऐसे शिष्य और ज्ञानी गुरु ढूढ़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है.
कम से कम आज के आपा-धापी में तो और भी कठिन है.

1 comment:

  1. गुरु-भक्त 'अमीर खुसरो ' का वर्णन उत्तम है।

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