ज्ञात पलों के अज्ञात चितेरा 'अज्ञेय'


मनोविज्ञान के पृष्टभूमि पर खीचे चित्र का अनूठा,अदभूत और अतुलनीय चित्रण इस कृति में सहज ही देखे जा सकते हैं.ज्ञात पलों के अज्ञात चितेरा 'अज्ञेय' ने तमाम रचनाये की हैं.कहानी,कविता,उपन्यास,पत्र-पत्रिकाओं और तार-सप्तकों का प्रकाशन भी किया है.आपके द्वारा लिखित यह उपन्यास अपने-आप में एकदम अलग और अपनी कथा-परिकल्पना के कारण बेहद मार्मिक और हकीकत की ज़मीन पर आधारित है.विविध पात्रों के माध्यम से व्यक्तित्व के अन्तर्निहित संबंधों का खुलासा बड़ी सरल तरीके से किया है.मानवीय सम्बन्धों में मुक्तता के संदर्भ को बड़ी प्रभावी तरीके से उल्लेखित किया है.'नदी के द्वीप' के मुख्य तीन किरदार हैं.कथा की अगुआ 'रेखा' है जो की विचारों से बहुत ही पौढ़ और सहनशील स्त्री के रूप में सामने आती है.वह भावनात्मक लगाव के अंतर को बखूबी पहचानती है.दया,प्रेम और करुणादिक् शब्दों के भेद को भलि-भांति जानती-समझती और विभेद करती है.यही कारण है कि 'चन्द्र' द्वारा बारम्बार नौकरी दिलाये जाने हेतु कृतज्ञ तो होती है,परन्तु दयावश या भावावेश में स्यंम को उसके एहसानों तले दब के दबती नहीं है.वस्तुतः नज़रअंदाज कर अपने कार्य में लीन रहती है.'चन्द्र' की भावुकता को समझते हुए भी ना समझने की कोशिश निरंतर करती है.ऐसा नहीं की बड़ा आदमी या पैसावाला समझकर स्वार्थवश उसके पीछे ही पड़ जाती है,वरन अपनी पहचान खुद के दम पर बनाने में यकीन करती है.संघर्षरत महिलाओं के लिए प्रेणना के प्रतीक रूप में देखी जा सकती है.जो लोग खुद के सपनों और कर्तव्यों पर यकीन करते हैं वो अपना एक अलग मुकाम बनाने में ही खुद को मुकम्मल समझते हैं.इसी तरह की कुब्बत 'रेखा में भी देखी जा सकती है.'भुवन' एक वैज्ञानिक है.उसके विचार भी उसी के अनुरूप है.गहन चिंतन-मनन और वाकपटुता आसानी से देखे जा सकते हैं.'गौरा' के आकर्षक होने के बावजूद भी वह संयमित रहता है.सदैव मार्गदर्शक की भूमिका निभाने के बाद भी स्यंम को उससे असम्पृक्त बनाये रखता है.लेकिन जैसे ही 'रेखा' के संपर्क में आता है.अपने में होनेवाले परिवर्तन से व्याकुल हो जाता है.अंततः मानसिक पीड़ा,हिचक और संकुचित दायरे को तोड़ते हुए 'गौरा' के समक्ष स्वीकार करता है कि वह 'रेखा' से स्नेह करने लगा है.प्यार के पगडंडी से रिश्ता जोड़ने के अनोखे तरीके देखे जा सकते हैं.इन सबसे अलग 'चन्द्र' 'गौरा' और 'रेखा' दोनों से ही समान ह्रदय भरा व्यवहार करता है.आज के दौर में एक दोस्त दूसरे के साथ इतनी इमानदारी से पेश आये तो यह इस रिश्ते की सबसे बड़ी कामयाबी है.क्योकि आज लोगों के अन्दर छल-कपट और दिखावा का जंगल-राज क्रूरता से देखे जा सकते हैं.जब कोई इन्सान खुद के भावना में ठीक-ठीक अंतर नहीं कर पाता है,तो वह किसी तीसरे का वरण करता है.वैसे ही उपन्यास के अंत में 'चन्द्र' बाबू एक अभिनेत्री से शादी कर लेता है.
इस तरह के प्यार समाज में नित्य-प्रति देखे जा सकते हैं.कुछ लोग अपने संस्कारों की दुहाई देकर रिश्ते खंड-खंड कर देते हैं.वहीँ कुछ व्यक्ति ही दोखेवाजी का जाल फैला कर मुक्ति का मार्ग तलाश लेते हैं.विवाह 'रेखा' भी करती है लेकिन 'रमेश' से करती है.इसमें उन दोनों की शुभकामनायें सन्निहित है.कथा के अंत होते-होते 'गौरा' के धैर्य की जीत उसे प्रासंगिक बना देता है.उसके विस्वास के विजयस्वरूप 'भुवन' उसे मिलता है.जब कोई ठान ले की यह वस्तु या व्यक्ति उसका ही है तो जीत सुनिश्चित है.इसमें(उपन्यास) भी यही देखने को मिला कि समर्पण,धैर्य और अटूट विस्वास को हराना आसान नहीं है.कुल मिलकर उपन्यास सुखांत है.
किसी भी कहानी,किस्सा,कथा और उपन्यास के विषय-वस्तु का सही-सही अंदाजा पाठक पढ़ने के दौरान ही लगा लेता है कि बुनावट का फलक किस तरफ फैलेगा और कहाँ जाके सिमटेगा,लेकिन कसी हुई भाषा,शैली,रोचक परिवेश और प्रतीकों के सटीक प्रयोग से बंधा पाठक पूरी कथा को पढने हेतु मजबूर हो जाता है.यह लेखक की लेखनी की ही जीत है.कौन सा पात्र सबसे अधिक प्रभावित करता है.यह इस बात से ही पता चल जाता है,जब लेखक उसी नाम से पुकारा जाने लगता है.ऐसा ही कमोवेश 'नदी के द्वीप' के सन्दर्भ में भी कहा जा सकता है.उपन्यास के बीच-बीच में अंगेजी कवियों की कवितायेँ,दार्शनिक बातें,बड़ों की बालसुलभ व्यवहार,प्रकृति के बीच उन्मुक्तता और मनुष्य का आपसी द्वेष सभी कुछ पाठकों पर प्रभाव छोड़ते हैं.
मुक्त या स्वछंद होने पर भी 'रेखा' व्यभिचारी नहीं है.वह अपना गौरव जानती है.
"समर्थ प्रकृत चरित्र सभ्यता के पास हुए पालतू चरित्र के नीचे दब जाता है-
व्यक्ति चरित्रहीन हो जाता है.
तब वह सृजन नहीं करता,अलंकरण करता है."
नोट-
यह पुस्तक मुझे M .A . के दौरान पुरस्कार के रूप में मिली थी.उसी समय पढ़ने के बाद जो कुछ लिखा था उसे आप सब सुधि पाठकों के समक्ष आज पोस्ट कर रही हूँ.
उम्मीद है इस पर आप सब अपनी प्रतिक्रिया जरुर देंगे.जो त्रुटी रह गयी है उस तरफ भी ध्यान दिलवाएंगे...

1 comment:

  1. पुरस्कार स्वरूप पुस्तक प्राप्ति के बाद लिखा आपका निष्कर्ष बहुत अच्छा है। पुरस्कार व विश्लेषण हेतु बधाई।

    ReplyDelete

लोकप्रिय पोस्ट्स