'तमाचा का तमाशा'


अक्सर घर-परिवार में भी ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब हम बहुत ही आक्रोशित और गुस्से में होते हैं.हम अपने बड़े-बूढों के फैसलों से कुंठित और बौखलाए हुए होते हैं,जी में आता है क्या न  कर डालें,लेकिन उनपर झल्लाने,पैर पटकने और खामोश हो जाने के आलावा कुछ दूसरा उपाय नहीं सुझता है.कभी-कभी ऐसा समय भी आता है जब बिना गलती के सजा भी भुगतनी पड़ती है.कुछ एक बार ऐसी स्थिति भी आती है जब कक्षा में गलती कोई एक करता है,किन्तु दंड का भागीदार सबको बनना पड़ता है.उस समय 'गुरु'/'अध्यापक' से नाराज होकर लत्तम-घुस्सम पर उतर आते हैं..?
जब हम अपने नाते-रिश्तेदारों के यहाँ होते हैं तो कुछ पाबंदियों को झेलना पड़ता है.
उस अवस्था में घर की शांति भंग कर ताले तोड़ निकल पड़ने की साजिश करते हैं.?
शायद नहीं;फिर किसी को मारके हम क्या हाशिल/सावित कर लेंगे..?
विरोध करने का सबको अधिकार है.लेकिन अपने संस्कारों,सभ्यताओं और संस्कृतियों पर कुठाराघात करके किसकी समृद्धि होगी..?
सोचने वाली बात है कि विरोध का रूप इतना उदंड,भयावह और आक्रामक क्यों होता जा रहा है.?
जब एक पैसा,दो पैसा का जमाना था तब भी महंगाई थी.
जब हजार-दो हजार का दौर आया तब भी महंगाई नही गई.
जो लोग दो सौ रूपये में घर चलाते थे.आज वो दो हजार में में भी तंगी से परेशान है.पूरे परिवार के तन ढकने की जुगत करने में असफल और ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
जिसे पहले चार हजार तनखाह मिलती थी आज उसे चालीस हजार मिल रहा है.ऐसे में भी किल्लत की लकीर नही पट रही है.
उस ज़माने में भी नौकरी के लिए लाइन लगती थी,अब भी लगती है.
'तीन बुलाये तेरह आये,रो-रो विपदा सुनाये' 
हम सब विकास के चाहे जितने दौर-पड़ाव से गुजर लें अनियंत्रित जनसँख्या के सामने बौने ही साबित होंगे.इस तरह के उत्श्रन्खलता में आकर उट-पटांग,उलूल-जुलूल और अभद्र व्यहार से क्या दिखाना चाहते हैं..?
अपने-अपने मांद में त्रस्त-प्रस्त और भ्रष्ट तो सभी हैं.फिर किसको-किसको सजा देंगे...
किस-किस पर तमाचा मार-मार के तमाशा बनते रहेंगे..
आखिर क्या-कुछ हल हो पायेगा...

1 comment:

  1. शरद पवार पर तमाचे के बहाने बेहद सटीक बाते काही हैं।

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