कोरे कागज पर मां की रोटी का किस्सा


कोरे मन के 'कोरे कागज' पे किस्सा तमाम लिखा. 
दिन लिखा,रात लिखी,भींगे बारिश का हाल लिखा. 
रूठी बेटी,माँ की रोटी,पिता का प्यार लिखा.
भाई-बहन के नोक-झोंक को बहरहाल लिखा. 
देश-विदेश के अच्छे-बुरे कर्मों का विस्तार लिखा. 
मिटटी-चिठ्ठी की बातें दर्द,खुसबू को आम लिखा. 
गिरते-उठते मूल्यों का हिसाब-किताब बरहाम लिखा. 
नीति,रीति,राजनीति,कूटनीति का बयान लिखा. 
धोती-कुर्ता छोड़,पतलून-पैंट के फटेहाल लिखा. 
घूँघट-घुंघरू,बिंदी छूटे,हिप्प-हाप्प के रूप-सरूप लिखा...

डॉ सुनीता 
17.11.2011

12 comments:

  1. आप की कविता ग़जल के फार्म में है . ग़जल का व्या्करण देख लें तो बात बन जाये ।
    बधाई

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  2. 'रूठी बेटी माँ की रोटी,पिता का प्यार लिखा' बेहतरीन पंक्ति है. ब्लॉग का राइटिंग स्पेस बड़ा और फॉण्ट भी बड़े होने चाहिए ताकि दूर से आसानी से देखा जा सके. प्रयास सार्थक और अच्छा है इसे गंभीरता से लो सुनीता जी.

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  3. I am very much happy to see you on this role , you are doing some innovative , some different things in your own way my hearty salute to you wish you all the best.

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  4. कविता मर्मस्पर्शी और अच्छी है।

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  5. wah bhaut khoob Sunita mam.

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  6. ,भींगे बारिश ????

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  7. भाई-बहन के नोक-झोंक ????

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  8. पतलून-पैंट के फटेहाल लिखा????

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  9. हिप्प-हाप्प के रूप-सरूप लिखा...????

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  10. बहुत अधिक भाषाई त्रुटियाँ हैं, जो एक हिन्दी शिक्षिका और कवयित्री से अपेक्षित नहीं हैं...

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